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जैसलमेर

अजमेरः पहले देश को दिया सपूत, अब जरूरतें बनीं पहाड़

देश की सरजमीं पर तीन आतंकियों के जब कदम पड़े तब पोस्ट पर मस्तान काठात अकेला ही था। ज्यों ही उन्हें इसका पता चला। वे बिना कुछ समय गवाएं आंतकियों से भिड़ गए।

जैसलमेरJan 25, 2016 / 01:12 pm

देश की सरजमीं पर तीन आतंकियों के जब कदम पड़े तब पोस्ट पर मस्तान काठात अकेला ही था। ज्यों ही उन्हें इसका पता चला। वे बिना कुछ समय गवाएं आंतकियों से भिड़ गए। करीब एक घंटे तक मुकाबला किया। एक घायल आंतकी ने 5 आर्मी बटालियन जम्मू कश्मीर में तैनात मस्तान काठात पर पीछे से गोलियां चला दी। शरीर में तीन गोलियां लगने के बाद भी वह लगातार आतंकियों पर गोलियां चलाते रहे। मस्तान की अंगुली ट्रिगर पर तब तक दबी रही। जब तक सभी आतंकियों को मार नहीं गिराया।

पोस्ट पर सेना की टुकड़ी आने के बाद तिरंगे को आखिरी सलाम देते हुए मस्तान काठात ने देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी। शहीद मस्तान काठात की पत्नी अनिता ने पत्रिका को बताया कि 31 मार्च 2010 को वह पोस्ट से दोपहर 11 बजे उससे बात कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें किसी ने सूचना दी की राजौरी सेक्टर में कुछ आतंकी घुस आए हैं।

मस्तान ने फिर बात करने का वादा किया एवं आंतकियों को सबक सिखाने रवाना हो गए। वह अकेले ही पोस्ट पर आतंकियों से भिड़ गए। आखिर तीन बजे फोन आया की आतंकियों से लोहा लेते समय मस्तान शहीद हो गए है। उस समय शहीद की बेटी जलफाना महज एक साल की थी। संयुक्त परिवार होने की वजह से उसे आज तक एहसास नहीं हुआ की उसके बच्चे अकेले है। शहीद मस्तान के माता पिता देवी काठात व हलीमी ने बताया कि आज भी वह मस्तान के दोनों बच्चों जलफाना व मुश्ताक को देखते हैं तो उन्हें दोनों में मस्तान की ही झलक दिखाईदेती है।

जमीन चाहिए तो जाओ जैसलमेर…
शहीद मस्तान की पत्नी अनिता को सरकार की ओर से जमीन की पेशकश की गई। सरकार की ओर से शहीद मस्तान के नाम आवंटित हुई जमीन जैसलमेर में दी गई। तब उसकी गोद में उसकी एक साल की मासूम जलफाना थी। मुश्ताक उसके गर्भ में था। जैसलमेर में वह किसी को जानती तक नहीं थी। शहीद के परिजन ने कितनी ही बार प्रशासन को जिले में अन्य जगह जमीन आवंटन के लिए कहा लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। इसी कारण जमीन लेने से मना कर दिया। इसकी एवज में महज पांच लाख रुपए दिए गए।

पेट्रोल पम्प नहीं मिलेगा
वीरांगना ने बताया की जमीन की एवज में उन्होंने पेट्रोल पम्प आवंटन की बात कही लेकिन प्रशासन ने अनिता को सैकण्डरी तक पढ़ा लिखा नहीं होने का हवाला देते हुए पेट्रोल पम्प आवंटन करने से मना कर दिया।

लाइट के लिए लगवा रहे चक्कर
अनिता अपने खेत में लाइट लगवाने के लिए जिला कलक्टर से तहसील कार्यालय तक के चक्कर लगा रही है। गत वर्ष जिला कलक्टर आरुषि मलिक ने तहसीलदार को शहीद के घर व खेत की रिपोर्ट बनाकर देने के लिए कहा था। तहसीलदार ने इसकी जिम्मेदारी गिरदावर व पटवारी को सौंपी। गिरदावर व पटवारी तीन बार उसके घर आकर चले गए लेकिन आज तक रिपोर्ट बनाकर नहीं दी।

शिक्षा के लिए वजीफा तक नहीं
वीरांगना ने बताया की सरकार की ओर से उनकी बेटी जलफाना के नाम साल भर पढ़ाई के लिए 1800 रुपए दिए जा रहे है। जबकि शहीद होने के बाद हुए मुश्ताक को पढ़ाने के लिए कोईराशि नहीं दी जा रही। इसके लिए उन्होंने सैनिक कल्याण बोर्ड से कई बार गुहार लगाई।

यह है परिवार में…
शहीद मस्तान काठात का परिवार आज भी संयुक्त है। मस्तान के माता पिता देवी काठात व हलीमी काठात अपने खेत व मवेशियों की सार संभाल करते है। सबसे बड़ा बेटा सुलतान 14 ग्रेनेडियर फौज में है। अभी सुलतान की पोस्टिंग सिक्किम में है। दो भाई सद्दाम व कप्तान खेती बाड़ी देखते है।

मिल चुका है सेना मेडल
अनिता को भारतीय सेना के तत्कालीन सेनाध्यक्ष व वर्तमान विदेश राज्य मंत्री जनरल वी.के. सिंह ने सेना का सर्वोच्च सम्मान सेना मेडल देकर सम्मानित किया था

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