जैसलमेर. 29 से 31 जनवरी के दौरान संपन्न पर्यटन के नजरिए से अंतरराष्ट्रीय महत्व वाला मरु महोत्सव संपन्न हो गया है। इस आयोजन का हासिल अगर पूछा जाए तो कुछ सबक ही सामने हैं। भविष्य में इस आयोजन को गरिमापूर्ण अतीत के समान उज्ज्वल बनाना है तो पर्यटन विभाग समेत सभी संबंधित पक्षों को ये सबक स्वीकारने होंगे। महोत्सव के दौरान दर्शकों की कमी कहीं नहीं रही। खासकर, दूसरे दिन डेडानसर मैदान और तीसरे दिन लाणेला और फिर सम के धोरों पर हजारों लोगों की मौजूदगी देखी गई। लेकिन इस भीड़ में विदेशी सैलानियों की कम संख्या अखरने वाली रही। 1979 में यह आयोजन प्रारंभ ही विदेशी सैलानियों को
जैसलमेर तथा राजस्थान के प्रति आकर्षित करने के लिए किया गया था। विदेशियों की कम उपस्थिति के चलते पर्यटन विभाग ही अब लक्ष्य से भटकता प्रतीत हो रहा है। समय रहते इसका प्रचार नहीं किया जाना किसी भी जानकार की समझ से परे है, क्योंकि मरु महोत्सव कोई आकस्मिक होने वाला समारोह नहीं है। इसकी तारीखें वर्षों पहले तय हो जाती है क्योंकि यह प्रतिवर्ष माघ मास की त्रयोदशी से पूर्णिमा तक मनाया जाता है।
कहां गए वे दिनपर्यटन क्षेत्र तथा मरु महोत्सव से पिछले दो-तीन दशकों से जुड़े लोगों की मानें तो कभी विदेशी पर्यटक जैसलमेर आने का कार्यक्रम मरु महोत्सव के दूसरे दिन डेडानसर में होने वाले ऊंटों के बेहतरीन करतबों के मद्देनजर बनाया करते थे। यही वजह है कि, तब डेडानसर मैदान में विदेशी पर्यटकों के पैवेलियन उनसे खचाखच भरे रहते थे। इस बार ऐसा नहंीं हुआ। डेडानसर में हजारों की दर्शकों में विदेशियों की संख्या बमुश्किल 200 तक रही। यहां तक कि कई विदेशी उस दिन जैसलमेर में मौजूद होने के बावजूद डेडानसर मैदान नहीं पहुंचे, क्योंकि उन्हें मरु महोत्सव के बारे में जानकारी नहीं थी। एन वक्त पर पर्यटन विभाग अपनी वेबसाइट पर मरु महोत्सव की जानकारी साझा करता है और जैसलमेर में बैनर-हॉर्डिंग चंद दिन पहले लगाए जाते हैं।
स्थानीय बाशिंदों को बढ़ रहा जुड़ावहाल में संपन्न मरु महोत्सव के दौरान जैसलमेर शहर ही नहीं बल्कि आसपास के ग्रामीण अंचलों से बड़ी तादाद में लोग जुटे। पहले दिन पूनम स्टेडियम में जहां विभिन्न प्रतियोगिताओं में स्थानीय लोगों की भागीदारी के कारण उनसे संबंधित व्यक्ति अच्छी तादाद में दिखाई दिए तो दूसरे दिन डेडानसर व तीसरे दिन लाणेला में घुड़दौड़ व शाम के समय सम सेंडड्यून्स पर ऊंट दौड़ देखने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के हजारों लोग आए। सम में ऊंट दौड़ अब अपना मुकाम बना चुकी है, लेकिन लाणेला में पहली बार आयोजित की गई घोड़ों की रेस देखने वालों में संबंधित क्षेत्र के अलावा जैसलमेर शहर व दूरदराज के ग्रामीण भी उत्साह के साथ शामिल हुए।
घुड़दौड़ का स्थान बदलना होगालाणेला में घुड़दौड़ वैसे तो भीड़ के लिहाज से कामयाब रही। पहली बार अच्छी नस्ल के घोड़ों को मरुभूमि में दौड़ते देखना हर किसी को पसंद आया लेकिन प्रतिबंधित क्षेत्र होने की वजह से विदेशी इसका लुत्फ उठाने से वंचित रहे। कई विदेशी पर्यटकों को रेस स्थल से लौटा दिया गया। इससे उनमें मायूसी देखी गई। पर्यटन विभाग को समय रहते इसका उचित प्रचार-प्रसार करना चाहिए था। इससे विदेशी मेहमानों को निराश नहीं होना पड़ता। इसके अलावा अब यह सुझाव भी सामने आ रहा है कि भविष्य में घुड़दौड़ लाणेला के रण के स्थान पर दामोदरा, कुलधरा अथवा कनोई क्षेत्र में कहीं होना चाहिए। इससे विदेशी भी उसमें भाग ले सकें और बाद में सारे दर्शक ऊंट रेस तथा समापन कार्यक्रम देखने सम पहुंच जाएं। घुड़दौड़ का इवेंट भी ग्रामीण अंचलों में होने वाली रुटीन रेस जैसा बन गया, उसे अंतरराष्ट्रीय महत्व के मरु महोत्सव के स्तर तक उठाया जाना चाहिए।
अधिकारी ही क्यों तय करें सबकुछमरु महोत्सव से सीधे तौर पर जिला प्रशासन व पर्यटन विभाग के अधिकारी ही जुड़े रहते हैं। सारे फैसले भी उनके स्तर पर लिए जाते हैं। जबकि पूर्व के वर्षों में जानकार लोगों से राय-मशविरा किया जाता था। प्रशासन ऐसे अधिकारियों को आयोजन का जिम्मा सौंप देता है, जिन्हें मरु महोत्सव का ककहरा भी ज्ञात नहीं। पर्यटन, कला व संस्कृति के जानकारों को दरकिनार किया जाना कई मौकों पर अखरा।
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