जैसलमेर

आर्थिक रूप से व पोषण की दृष्टि से उपयोगी पौधों का रोपण की जरूरत

-कृषि विज्ञान केन्द्र के अनुसार मोरिंगा या सहजना अच्छा विकल्प

जैसलमेरMay 09, 2021 / 10:07 am

Deepak Vyas

आर्थिक रूप से व पोषण की दृष्टि से उपयोगी पौधों का रोपण की जरूरत

जैसलमेर. स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर के कृषि विज्ञान केंद्र जैसलमेर के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ दीपक चतुर्वेदी ने किसानों के साथ जानकारी साझा करते हुए कहा कि वर्तमान समय में पर्यावरण संरक्षण को देखते हुए आर्थिक रूप से व पोषण की दृष्टि से उपयोगी पौधों का रोपण की जरूरत पर बल दिया है। डॉ. चतुर्वेदी के अनुसार इसका सबसे अच्छा विकल्प मोरिंगा अथवा सहजना है। मोरिंगा में प्रोटीन्स, विटामिंस और मिनरल्स भरपूर होता है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट होने के कारण यह कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त होने से भी बचाता है। सहजना मोरिंगा का उपयोग अस्थमा, मधुमेह, मोटापा, रजोनिवृत्ति के लक्षण और कई अन्य बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता है। मोरिंगा के बीजों के तेल का उपयोग खाद्य पदार्थों इत्र और बालों की देखभाल करने वाले उत्पादों में और मशीन लुब्रिकेंट के रूप में भी किया जाता है
इसके पौधों को हम कम पानी में आसानी से उगा सकते हैं व अधिकतम उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि सहजना ऐसा पौधा है जैसलमेर क्षेत्र की मृदा में आसानी से उगाया जा सकता है सहजना की जड़, तना, फूल पत्ती इत्यादि का औषधि में महत्वपूर्ण भूमिका है। इसकी पत्तियों का प्रयोग औषधि के रूप में मनुष्य को लाभ पहुंचाता है, वहीं इसकी पत्तियों को पशुओं को खिलाने से दूध में वृद्धि होती है। कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि मौसम अन्वेषक नरसीराम आजाद ने किसानों को जानकारी देते हुए कहा कि मोरिंगा पर मौसम का व तापमान का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। आजाद के अनुसार मोरिंगा का पौधा केवल 6 से 8 महीने में उत्पादन शुरू कर देता है। इसकी बुवाई के लिए बीजों द्वारा तैयार पौधे अथवा मोरिंगा की कलम को आसानी से उगाया जा सकता है और इसकी फलियों को सब्जी या अचार के रूप में काम में लिया जा सकता है। इसकी पत्तियों को पाउडर बनाकर व्यापारियों को बेचकर अच्छी आय प्राप्त की जा सकेगी। केन्द्र के वरिष्ठ अनुसंधान अध्ययन शीशपाल के अनुसार मोरिंगा के पौधे ट्रायल के तौर पर कृषि विज्ञान केंद्र पर लगाए गए हैं, जिनकी अच्छी वृद्धि देखी गई है। उन्होंने कहा कि किसान इसकी अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के सोशल मीडिया गु्रपों के माध्यम से जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।

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