scriptराइट टू हेल्थ बिल को विधानसभा में पेश करने का विरोध | Opposition to the introduction of the Right to Health Bill in the Legi | Patrika News
जैसलमेर

राइट टू हेल्थ बिल को विधानसभा में पेश करने का विरोध

– संयुक्त संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री को भेजा ज्ञापन

जैसलमेरFeb 06, 2023 / 07:58 pm

Deepak Vyas

राइट टू हेल्थ बिल को विधानसभा में पेश करने का विरोध

राइट टू हेल्थ बिल को विधानसभा में पेश करने का विरोध

जैसलमेर. राजस्थान सरकार की ओर से विधानसभा में राइट टू हेल्थ बिल लाए जाने का निजी अस्पतालों व चिकित्सकों की ओर से गठित संयुक्त संघर्ष समिति ने जैसलमेर जिला स्तर पर भी प्रदेश नेतृत्व के निर्देशानुसार विरोध किया है और इस संबंध में एक विस्तृत ज्ञापन मुख्यमंत्री को भेजा है। जिसमें कहा गया है कि राज्य सरकार की ओर से राइट टू हेल्थ बिल को फिर से विधानसभा में पारित करवाया जाना उचित नहीं है और इससे निजी चिकित्सा का तंत्र बुरी तरह से प्रभावित होगा जिसका खामियाजा अंतत: आमजन को भुगतना पड़ेगा। जैसलमेर के डॉ. बीके आर्य, डॉ. अनिल माथुर, डॉ. एसके दूबे, डॉ. परमार, डॉ. एसएस राठौड़, डॉ. लिली कुट्टी, डॉ. पीसी गर्ग, डॉ. दीपक वैष्णव, डॉ. मेघा और डॉ. संजय व्यास ने इस संबंध में ज्ञापन भेजा है। जिसमें कहा गया कि प्रस्तावित विधेयकमें बहुत सी ऐसी खामियां हैं जिनके चलते राज्य के सभी चिकित्सक एवं अस्पताल इसका विरोध कर रहे हैं। यह बिल राज्य के निवासियों को उसके शरीर में बुनियादी स्वास्थ्य निर्धारकों के अधिकार प्रदान नहीं करता है, यह केवल रोगी के अधिकारों का चार्टर है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाना राज्य सरकार का दायित्व है तथा राज्य सरकार ऐसी स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध करवाने में पूर्णत: सक्षम भी है लेकिन इस बिल के माध्यम से सरकार निजी अस्पतालों से बिना इमरजेंसी को परिभाषित किए आपातकाल के नाम पर नि:शुल्क सेवाएं लेना चाहती हैं। निजी अस्पतालों को अपने स्तर पर संसाधन जुटाने होते हैं तथा बिना संसाधनों के कोई भी व्यवसाय अनिश्चित काल तक नि:शुल्क सेवाएं नहीं दे सकता।
ज्ञापन में कहा गया कि आपातकालीन अवस्था में मरीज को फस्र्ट एड देने के लिए सभी चिकित्सक एमसीआई के कॉड ऑफएथिक्स के अनुसार बाध्य हैं तथा कोई भी चिकित्सक कभी भी किसी रोगी को फस्र्ट एड से वंचित नहीं रखता। जनता को चिकित्सा प्राप्त करने के अधिकांश अधिकार बिंदु मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया/ नेशनल मेडिकल कमीशन की ओर से परिभाषित हैं व चिकित्सक उन प्रावधानों के अनुरूप चिकित्सा देने को पहले से ही प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए अलग से कानून की आवश्यकता नहीं है।
संयुक्त संघर्ष समिति ने कहा कि यह केवल एक सतही कानून है जो व्यावहारिक रूप से स्वास्थ्य के संदर्भ में सुरक्षा प्रदान नहीं करता है। यह कानून राज्य के निवासियों के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं और स्वास्थ्य के निर्धारकों में सुधार के इरादे के बिना निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं को दबाने, नियंत्रित करने और विनियमित करने के लिए तैयार किया गया है। समिति ने कहा कि इस बिल का राज्य में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की गिरावट और गायब होने का दीर्घकालिक प्रभाव होगा। डॉक्टर-रोगी संबंध और इसके सामंजस्य का गहरा प्रभाव पड़ेगा। ऐसे में समिति ने सरकार से मांग की है कि प्रस्तावित राइट टू हेल्थ विधेयक को दोबारा विधानसभा में पेश नहीं किया जाए।

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