भाजपा को बहुगुणा पहुंचा सकते हैं नुकसान सबसे बड़ा झटका भाजपा प्रत्याशी दिलीप दुबे को लग सकता है। क्योंकि इनके खिलाफ वैश्य समाज के दमदार नेता और भाजपा के लिए 36 साल से सेवा कर रहे अनिल बहुगुणा ने बगावत की है। जब भाजपा ने अनिल बहुगुणा की जगह दिलीप को उम्मीदवार बनाया तो अनिल बहुगुणा ने बगावत कर दी और अपनी ताकत दिखाते हुए सभी वैश्यों को एक किया और भाजपा उम्मीदवार दिलीप दुबे के खिलाफ ताल ठोक दी, जिससे चुनाव में भाजपा को वैश्य समाज का वोट न मिलने से नुकसान हो सकता है। क्योंकि वैश्य समाज को भाजपा का एक मुश्त वोटर माना जाता है। अनिल बहुगुणा ने बतौर निर्दल प्रत्याशी नामांकन किया है।
सपा को उनकी पार्टी के लोग पहुंचा रहे नुकसान समाजवादी पार्टी की बात करें तो उरई नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए जेडीयू के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश निरंजन भैया जी के पुत्र ज्ञानेन्द्र कुमार निरंजन को उम्मीदवार बनाया गया है। इन पर सपा अध्यक्ष
अखिलेश यादव की विशेष कृपा रही। क्योंकि विधान सभा चुनाव में जदयू के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश निरंजन ने सपा का पूरा समर्थन किया था और खुलकर मंच पर अखिलेश यादव का साथ दिया था, लेकिन जब ज्ञानेन्द्र का टिकट सपा से पक्का हुआ तो पुराने सपाईयों ने बगावत शुरू कर दी। इस सीट पर दर्जनों दावेदार थे, लेकिन सभी को पार्टी ने किनारे करते हुए ज्ञानेंद्र को टिकट दे दिया। इससे नाराज सपा नेता देवेंद्र यादव ने निर्दलीय पर्चा भर दिया और ज्ञानेन्द्र के खिलाफ खड़े हो गये। इसके अलावा पार्टी के दिग्गज नेता भी ज्ञानेन्द्र के चुनाव प्रचार से कन्नी काट रहे हैं, जिससे उन्हें इस चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है।
बसपा के लिए अवधेश न रहे रोड़ा अगर बहुजन समाज पार्टी की बात करें तो इस बार उन्होंने मुस्लिम प्रत्याशी पर दांव लगाया है। इस सीट पर युवा मुहम्मद रहीस खां को बसपा ने प्रत्याशी घोषित किया है। रहीस के प्रत्याशी घोषित होते ही बसपा में भी बगावत शुरू हो गई। उनके मिशनरी कार्यकर्ता ने जिलाध्यक्ष पर आरोप लगाने शुरू कर दिए। आरोप पैसा लेकर टिकट देने का था। इसी बगावत के बाद यहां शिक्षक नेता अवधेश निरंजन ने ताल ठोक दी और अपना निर्दलीय पर्चा भर दिया, जो बसपा प्रत्याशी की जीत में रोड़ा बन सकते है।
कांग्रेस में जारी है परिवारवाद कांग्रेस की बात करे तो वह अपने अस्तित्व की खुद लड़ाई लड़ रही है, लेकिन यहां पर परिवारवाद सामने आया है। यहां कई कांग्रेसी नेता होने के बाद भी परिवारवाद का साया देखने को मिला। यहां पर कांग्रेस के पूर्व विधायक और प्रदेश उपाध्यक्ष विनोद चतुर्वेदी के पुत्र आशीष चतुर्वेदी को टिकट देकर कांग्रेस ने एक बार फिर परिवारवाद की राजनीति खेली। जैसा उन पर आरोप लगाया जाता रहा है। इसी कारण कांग्रेस के जो बचे हुए जमीनी नेता हैं, वह भी कांग्रेस से किनारा काट रहे हैं और उसे भी नुकसान होने की उम्मीद है।