70 साल बाद करवा चौथ पर मंगल-रोहिणी नक्षत्र का विशेष संयोग
गेस्ट राइटर: शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी
करवा चौथ का करवा चौथ कार्तिक माह की चतुर्थी को मनाया जाता है। जो गुरुवार को है। सुहागिनी महिलाएं अपने पति के दीर्घायु के लिए व्रत रखकर चांद के दर्शन के बाद व्रत पूरा करेगी।
गेस्ट राइटर: शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी
भीनमाल. करवा चौथ का करवा चौथ कार्तिक माह की चतुर्थी को मनाया जाता है। जो गुरुवार को है। सुहागिनी महिलाएं अपने पति के दीर्घायु के लिए व्रत रखकर चांद के दर्शन के बाद व्रत पूरा करेगी। करवा चौथ का व्रत गुरूवार सुबह 06 बजकर 48 मिनट से चतुर्थी के समापन शुक्रवार सुबह 07 बजकर 29 मिनट तक रहेगा। ब्रह्मकर्म प्रकाशक शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी ने बताया कि इस साल करवा चौथ पर रोहिणी नक्षत्र व मंगल का विशेष शुभ संयोग बना है। करवा चौथ पर यह संयोग 70 साल बाद बन रहा है। करवा चौथ पर रोहिणी नक्षत्र व मंगल का योग अत्यधिक मंगलकारी है। इसके अलावा इस करवा चौथ पर रोहिणी नक्षत्र के साथ सत्यभामा एवं मार्कण्डेय योग भी बन रहा है जो अन्य योगों की तुलना में शुभकारी है। यह शुभ संयोग भगवान श्रीकृष्ण व सत्यभामा के मिलन के समय बना था। करवा चौथ व संकष्टी चतुर्थी एक दिन हैं। संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा की जाती है। वहीं करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु की कामना के लिए निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव, पार्वती व कार्तिकेय की पूजा करतीं हैं। संध्या काल में चंद्र देखने के बाद अघ्र्य देकर व्रती अपना व्रत तोड़ती हैं। सौभाग्य का यह व्रत सूर्योदय होने से पहले आरंभ किया जाता है एवं सूर्यास्त के बाद चंद्रमा निकलने तक रखा जाता है।
यह है व्रत रखने की विधि
इस व्रत में महिलाएं बिना जल ग्रहण किए व्रत रखती हैं एवं रात के वक्त चांद निकलने के बाद व्रत का पारण करती हैं। सामाजिक मान्यता है कि सुहागिन महिलाएं यदि करवा चौथ व्रत का विधिवत पालन करें तो उनके पति की आयु लंबी होती है। साथ ही वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है। पति की दीर्घायु व मंगल-कामना के लिए सुहागिन नारियों का यह महान पर्व है। करवा (जलपात्र) द्वारा कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को चन्द्रमा को अघ्र्य देकर पारण (उपवास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को चन्द्रमा को अघ्र्य देकर पारण उपवास के बाद का पहला भोजन) करने का विधान होने से इसका नाम करवा चौथ है।
करवा चौथ और करक चतुर्थी पर्याय है। चन्द्रोदय तक निर्जल उपवास रखकर पुण्य संचय करना इस पर्व की विधि है। चन्द्र दर्शनोपरांत सास या परिवार में ज्येष्ठ श्रद्धेय नारी को बायना देकर सदा सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद लेना व्रत साफल्य की पहचान है। सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाएं, सरगी (दांतन मीड़ा) के रूप में मिला हुआ भोजन करें पानी पी, भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें। करवाचौथ में महिलाएं पूरे दिन कुछ ग्रहण नहीं करती फिर शाम के समय चांद को देखने के बाद दर्शन कर व्रत खोलती हैं।.३
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