scriptअफीम के जाल में ‘जालोरीÓ, लाने का नहीं खतरा और खेत से ही तस्करी | 'Jaalori' in the web of opium trap, not risk of bringing and smuggling | Patrika News
जालोर

अफीम के जाल में ‘जालोरीÓ, लाने का नहीं खतरा और खेत से ही तस्करी

अभी तक केवल तस्करी व इसके सेवन तक ही सीमित रहने वाले जालोर में अफीम का उत्पादन भी किया जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं। हालांकि अवैध रूप से पनपाई अफीम की खेती पुलिस ने पकड़ ली, लेकिन मुख्य तस्करों तक हाथ नहीं पहुंचे

जालोरMar 25, 2019 / 01:12 pm

Jitesh kumar Rawal

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अफीम के जाल में ‘जालोरीÓ, लाने का नहीं खतरा और खेत से ही तस्करी

जीतेश रावल @ जालोर. मारवाड़ में अभी तक मेवाड़ से ही काला सोना (अफीम) आ रहा था, लेकिन अब इसका उत्पादन यहीं होने लगा है। चौंकना लाजिमी पर हकीकत यही है। अफीम को मेवाड़ से लाने में बड़ी जोखिम को देखते हुए तस्करों ने अवैध रूप से इसकी खेती शुरू कर दी है। मारवाड़ में अफीम का चलन ज्यादा होने से अफीम की खपत भी अधिक होती है। यहां न केवल मान-मनुहार में अफीम की मांग रहती है बल्कि शौकीनों की भी कोई कमी नहीं है। ऐसे में चोरी-छिपे ही सही पर तस्कर मेवाड़ से माल लाने में कोई गुरेज नहीं करते। अफीम के इस अवैध कारोबार में रातों-रात करोड़ों कमाने की चाह में कई नए लोग भी इस धंधे को अपना रहे हैं। अभी तक केवल तस्करी व इसके सेवन तक ही सीमित रहने वाले जालोर में अफीम का उत्पादन भी किया जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं। हालांकि अवैध रूप से पनपाई अफीम की खेती पुलिस ने पकड़ ली, लेकिन मुख्य तस्करों तक हाथ नहीं पहुंचे। पौधों की चीराई के बादनिकाली अफीम कहां गई इसका भी किसी के पास हिसाब नहीं है।

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जहां खपाना है वहीं कर दी खेती
अफीम व डोडा-पोस्त की तस्करी के कारोबार में जुड़े लोग जालोरी धरती परकिस्मत आजमाने को प्रयासरत हैं।शायद यही कारण है कि यहां अवैध रूप से खेती को अंजाम दिया जा रहा है। कम जोखिम में ज्यादा माल कमाने की फिराक में तस्कर यहां अफीम के पौधे उगाने पर ध्यान दे रहे हैं। मेवाड़ से अफीम व डोडा-पोस्त की खेप लेकर कई जिलेपार करते हुए जालोर-सांचौर तक पहुंचना जोखिम भरा है। खपत वाली जगह ही अफीम की खेती शुरू करने से तस्करों का जोखिम कम हो गया, लेकिन अवैध खेती के ये मामले एक के बाद एक सामने आ रहे हैं।

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पुलिस मुखबीरों को नहीं मिली गंध
हालांकि अवैध रूप से चल रही इस खेती को पकडऩा पुलिस के लिए अच्छी उपलब्धि है, लेकिन इस तरह के मामले हाथ भी तब लगे हैं जब अफीम निकाला जा चुका था। लगभग चार माह से लहलहा रहे इन पौधों से अफीम तक निकाल लिया गया और कहीं पार हो गया, लेकिन पुलिस को इन चार माह में इसकी गंध तक नहीं मिली। इसे पुलिस के मुखबीर तंत्र की कमजोरी कही जाएगी कि करीब चार माह से चल रही इस तरह की खेती के बारे में पुलिस के पास सूचना तक नहीं थी। ऐसे में अंदेशा तो यह भी है कि इस तरह की अवैध खेती के मामले अन्य जगह भी चल रहे हो सकते हैं।
कार्रवाई कर रहे हैं…
जिले में अफीम की अवैध रूप से खेती की जा रही थी। मामले सामने आने पर कार्रवाई की गई है।
-सत्येंद्रपाल सिंह, एएसपी, जालोर

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