scriptअब सारंगी की जगह गूंजेगा ककहरा | Now instead of violin reverberates ABC | Patrika News
जालोर

अब सारंगी की जगह गूंजेगा ककहरा

जिन नन्हीं
अंगुलियो से सारंगी पर सा,रे,ग, म की मधुर धुन बजा करती थी, अब उन अंगुलियों से
स्लेट पर क, ख, ग, घ, ड़ लिखाए जा रहे है

जालोरAug 08, 2015 / 11:49 pm

शंकर शर्मा

Jalore photo

Jalore photo


गुमानसिंह राव
रानीवाड़ा। जिन नन्हीं अंगुलियो से सारंगी पर सा,रे,ग, म की मधुर धुन बजा करती थी, अब उन अंगुलियों से स्लेट पर क, ख, ग, घ, ड़ लिखाए जा रहे है। सारंगी को छोड़ कलम का दामन थमाने के प्रयास साकार हुए है। तालीम से कोसों दूर समाज का एक ऎसा तबका भी है, जिनका पाठशाला से खास नाता नहीं रहा।

कबीले के रूप में घुमक्कड़ जीवन यापन करने वाले एवं कच्चे आशियानों में रहने वाली पाउआ जाति को समाज में सबसे पिछड़ा तबका माना जाता है। लोक वाद्य सारंगी पर यह लोग गाना बजाना कर जीवन यापन करते है। अक्सर हेरिटेज पर्यटक स्थलों पर पाउआ जाति के कलाकार सारंगी बजाकर लोगों को खुश करते हैं। इनका स्थायी बसेरा नहीं होता है। ज्यादातर लोग अशिक्षित है। इन्हें नवाचार से जोड़ने की पहल एजूकेट गल्र्स नाम की स्वंय सेवी संस्था ने की है।

मेड़ा गांव की सरकारी स्कूल में गुरूवार को 12 बालिकाओं को विधिवत प्रवेश दिलाया गया। शिक्षा क्षेत्र में इस उपलब्घि को इबारत के रूप में पहचान मिलना माना जाएगा। इनमें से कई अभी स्कूल जाने योग्य हुईहै तो कई 14 वर्ष तक की आयु की भी है। एजूकेट गल्र्स संस्थान के समन्वयक ओमप्रकाश बिश्नोई बताते है कि सरकार के निर्देशानुसार ड्रॉपआउट बालिकाओं को पाठशाला से जोड़ने के अभियान के दौरान मेड़ा सहित अन्य गांवों में निवासरत पाउआ जाति के परिवारों का सर्वे किया तो देखा गया कि अधिकतर नई पीढ़ी असाक्षर है। ऎसी स्थिति में गांव के सरपंच सहित मौजूद लोगों से सम्पर्क कर इस वर्ग की बालिकाओं को पाठशाला से जोड़ने की कवायद शुरू की गई। काफी प्रयास कर परिवार के मुखियाओं को तैयार किया गया।

 मेड़ा की सरकारी स्कूल में पाउआ जाति के बच्चों का प्रवेश धूमधाम से कराया गया। बच्चों सहित कबीले के मुखिया का माल्यार्पण के साथ मंुह मीठाकर स्कूल में प्रवेश कराया गया। साथ ही निशुल्क शिक्षण सामग्री भी उपलब्ध कराई गई। प्रधानाध्यापक जोरावरसिंह देवड़ा ने कहा कि बालिकाओं का ठहराव सुनिश्चित करने के लिए उन्हें ड्रेस सहित अन्य सुविधाएं भी मुहैया कराई जाएगी। तसव्वुर सा यह कार्य हकीकत में बदलने से शिक्षा क्षेत्र के लिए बेहतर उदाहरण बन सकता है।

भणवा रो मन
बालिका झमका ने ठेठ मारवाड़ी में कहा कि हारे भणवा रो मन है, मारसा से केवा ती स्कूल मा आई हूं। दूसरी छात्रा रमीला ने कहा कि परिवार के लोग सुबह होते ही सारंगी लेकर घर से निकल जाते है, ऎसे में दिनभर काम नहीं होने पर सारंगी सीखना या भेड़ बकरी को जंगल तक चराना ही काम था। अब पढ़ाई से जुड़ने से वे सब खुश नजर आई। जोशना ने बताया कि घर में पढ़ाई का माहौल नहीं होने से स्कूल जाने का कभी ख्याल ही नहीं आया। बालिकाएं स्कूल में प्रफुçल्लत दिखाई दे रही थी।

प्रयास हुए सफल
पाउआ जाति को अन्य समाज के समतुल्य लाने के लिए सर्वप्रथम शिक्षित होना जरूरी है। सबसे पहले बालिकाओं को पाठशाला से जोड़ा जा रहा है। बालिकाएं शिक्षित होगी तो वो परिवार को भी शिक्षित कर सकेगी। पाठशाला से जुड़ी इन बालिकाओं का ठहराव शत प्रतिशत हो इसलिए मॉनीटरिंग जरूरी है। – रमीलादेवी देवासी, सरपंच, ग्राम पंचायत मेड़ा
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो