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जालोर

नेहड़ में टिड्डी को ढंूढता रह गया नियंत्रण दल, पर नहीं मिला झुंड

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जालोरJul 09, 2019 / 11:10 am

Dharmendra Kumar Ramawat

locusts in Nehad area

नेहड़ में टिड्डी को ढंूढता रह गया नियंत्रण दल, पर नहीं मिला झुंड

चितलवाना. नेहड़ में किसानों को टिड्डी आने से भले ही खतरा हो रहा हो, लेकिन सर्च टीम की लापरवाही से टिड्डी का झुंड भी नेहड़ के बबुल की झाडिय़ों में गायब हो गया। टिड्डी दल को सोमवार को दिन भर प्रशासन व नियंत्रक टीम ढूंढती ही रह गई।
नेहड़ के गांवों में टिड्डी आने के बाद से लेकर टिड्डी नियंत्रक दल की सर्च टीम की ओर से समय पर सर्च नहीं कर पाने से टिम टिड्डी दल के पड़ाव तक नहीं पहुंच पा रही थी। सोमवार को टीम को टिड्डी दल का सुराग नहीं लग पाया।दिनभर प्रशासन व टिड्डी नियंत्रक दल टिड्डी के पड़ाव स्थल को ढूंढता रहा।इसके लिए किसानों की भी मदद ली गई। लेकिन टीम को टिड्डियों के पड़ाव का पता नहीं लग पाया।
रविवार को रिड़का में लोकेड करके छोड़ा
टिड्डी नियंत्रक दल की ओर से रिड़का में टिड्डी के झुंड को उड़ते हुए लोकेड करके छोड़ा गया।टीम को पता था कि रात को टिड्डी समूह के पड़ाव लेने के बाद में सोमवार को अलसुबह ही ऑपरेशन किया जाएगा। जबकि सोमवार को लोकेड जगह पर टिड्डी का दल मिला ही नहीं।
सर्च टीम को नहीं लोकेशन का पता
नेहड़ के गांवों में टिड्डी का दल आने के बाद से लेकर सर्च टीम को उसके लोकेशन का पता नहीं होने से पूरे दिन बबूल की झाडिय़ों में टीम के सदस्य टिड्डी दल को ढूंढते रहे। ऐसे में किसानों ने भी खाजबीन करने में मदद की। लेकिन टिड्डी समूह नहीं मिला।
महकमा को नहीं परवाह
नेहड़ में रिड़का गांव में रविवार को टिड्डी का दल उड़ते हुए मिलने के बाद में सोमवार को ऑपरेशन करने से सर्च टीम की ओर से रविवार को पड़ाव करने तक गार्ड डयूटी की जानी थी। सोमवार को उजाला होने से पहले ऑपरेशन करना था। लेकिन सर्च टीम ने गार्ड डयूटी ही नहीं की। जिससे पड़ाव की लोकेशन ही नहीं मिल पाई।
सुसाइड पुल बनाकर समुद्र पार करता है टिड्डी दल
– टिड्डी के फैलने के बाद में काबू पाना होता हैं मुश्किल
चितलवाना. कहते है कि अपनों का सहयोग हो तो सात समंदर पार करना भी आसान हो जाता हैं, ऐसी ही सहयोग की भावना टिड्डी दल में नजर आती है। टिड्डी अपने ही वंश का सुसाइड पुल बनाकर अपने वंश को आगे बढ़ाने में सहयोग करती हैं। यह समुद्र पार कर कई देशों में जाकर अपना फैलाव करती हैं। भूमध्य एरिया के देशों में पनपने के बाद में अन्य देशों में हवा से रुख के साथ ही बढ़ती जाती हैं। दुनिया में टिड्डी की दस तरह की प्रजाति पाई जाति है। जिनमें रेगिस्तानी टिड्डी, बाम्बे टिड्डी, प्रवासी टिड्डी, इटेलियन टिड्डी, मोरक्को टिड्डी, लाल टिड्डी, भूरी टिड्डी, दक्षिण अमरिकन टिड्डी, आस्ट्रेलियन टिड्डी, वृक्ष टिड्डी होती हैं।इन में से भारत में चार प्रजातियां, रेगिस्तानी, प्रवासी, बोम्बे व वृक्ष टिड्डी पाई जाती हैं।
मौसम के अनुसार बदलती हैं रंग
टिड्डी घातक जानवरों से अपने बचाव को लेकर मौसम के अनुसार रंग भी बदलती रहती हैं।ऐसे में उसे खतरा महसूस होने पर वह मौसम के अनुसार ही रंग बदलती हैं। भारत में जलवायु के अनुसार जुलाई से अक्टूम्बर तक टिड्डी का प्रजनन होता हैं। जो एक ही साथ में हजारो से लाखों, लाखों से करोड़ो व करोड़ो से अरबों में पहुंच जाती हैं। जो एक मादा टिड्डी तीन बार में अंडे देती हैं।
इन विभागों की होती जिम्मेदारी
भारत सरकार की ओर से टिड्डी आने के बाद में टिड्डी चेतवानी संगठन, वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग को रेगिस्तानी क्षेत्रों विशेष रुप से राजस्थान व गुजरात राज्य में रेगिस्तानी टिड्डी पर निगरानी, सर्वेक्षण व नियंत्रण का उत्तरदायित्व सौंपा गया हैं।
इनका कहना…
नेहड़ के गांवों में टिड्डी दल की खोजबीन करते रहे पर नहीं मिला।टिड्डी नियंत्रक दल भी दिन भर खोजबीन करता रहा।
– पीताम्बर राठी, तहसीलदार सांचौर
हमने तहसीलदार से बात की हैं।आज टिड्डी का दल नहीं मिला हैं। सर्च टीम की लापरवाही के बारे में उच्च अधिकारियों से बात की जाएगी।
– जब्बरसिंह, उपखण्ड अधिकारी चितलवाना

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