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जालोर

खारे पानी की सप्लाई के विरोध में उतरे ग्रामीण

अधिकारी बोले-पानी खारा होगा तो हाथ मुंह धोने में तो काम आ ही जाएगा

जालोरApr 28, 2018 / 10:46 am

Dharmendra Kumar Ramawat

Supply of salty water

Villagers against to phed for supply of salty water

चितलवाना. रणोदर गांव की सरहद से जिले के कई गांवों को नर्मदा का मीठा दिया जा रहा है, लेकिन यहां के ग्रामीणों को विभाग खारा पानी पिलाने की तैयारी कर रहा है। दरअसल, जलदाय विभाग के अधिकारियों की ओर से यहां एफआर प्रोजेक्ट के तहत फिल्टर प्लांट लगा होने के बावजूद गांव के जीएलआर को खारे पानी के ट्यूबवेल से जोडऩे की कवायद की जा रही है। ऐसे में ग्रामीणों ने इसका विरोध जताया है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव की मुख्य आबादी से एक किमी दूर नर्मदा मुख्य नहर व दो किमी दूर एफआर प्रोजेक्ट के तहत फिल्टर प्लांट लगा हुआ है। इसके बावजूद विभाग गांव में सालों से मीठे पानी की सप्लाई नहीं कर रहा है। वहीं पत्रिका में मामला उजागर होने के बाद अब विभाग आनन-फानन में खारे पानी के ट्यूबवेल से सप्लाई की तैयारी कर रहा है। ऐसे में ग्रामीणों ने गांव की मुख्य आबादी में स्थित जीएलआर को खारे पानी के ट्यूबवेल से जोडऩे का विरोध जताया है। खास बात तो यह है कि अधिकारियों का इस बारे में यह कहना है कि ट्यूबवेल में पानी खारा है तो लोगों के हाथ-मुंह धोने में तो काम आ ही जाएगा। इस तरह अधिकारियों के बेतुके जवाब को लेकर ग्रामीणों ने इसका विरोध जताया है।
बीस साल से नहीं आ रहा पानी
रणोदर ग्राम पंचायत मुख्यालय में करीब पांच हजार की आबादी है, लेकिन गांव में जलदाय विभाग की ओर से बीस साल से पानी की एक बूंद भी सप्लाई नहीं की गई है। विभागीय अधिकारियों को इसकी जानकारी होने के बावजूद गांव का जीएलआर आज भी सूखा पड़ा है। रणोदर पंचायत मुख्यालय पर गांव की मुख्य आबादी के बीच विभाग ने जीएलआर तो बना दिया, लेकिन बीस साल से इसे पाइपलाइन से जोड़ा ही नहीं गया है।
इनका कहना है…
गांव में बीस साल पहले बने जीएलआर में पानी की सप्लाई की बात दूर इसे पाइपलाइन से भी जोड़ा नहीं गया है। ऐसे में ग्रामीणों को पेयजल के लिए परेशान होना पड़ रहा है।
– भूरसिंह, ग्रामीण, रणोदर
रणोदर गांव के ट्यूबवेल में मीठा पानी होगा तो पीने के काम आ जाएगा। वहीं पानी खारा होगा तो हाथ-मुंह धोने के लिए तो काम आ ही जाएगा। पानी चाहे खारा हो या मीठा, गांव के लोगों के काम तो आना ही है।
– गंगाराम पारेगी, एईएन, पीएचईडी, सांचौर

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