उम्र 60 साल, सैकड़ों बार रक्तदान
60 साल के हो चले शब्बीर अब तक सैकड़ों लोगों को रक्तदान कर चुके हैं। इसमें सभी धर्मों के लोग शामिल हैं। दूसरे शब्दों में कहें कि शब्बीर का रक्त सबकी शिराओं में दौड़ रहा है। यह दौड़ उनके जीवन को आगे ले जा रही है। इसी से शब्बीर को जम्मू-कश्मीर का ‘ब्लडमैन ऑफ कश्मीर’ बना दिया है। शब्बीर पिछले 37 साल के दौरान 169 बार रक्तदान कर चुके हैं। दरअसल शब्बीर में मानवता के लिए अपना फर्ज अदा करने की ज्योति एक घटना से जागी। 1980 में एक फुटबॉल मैच के दौरान उनके एक दोस्त के घायल होने पर महज 15 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार रक्तदान किया। उसके बाद से यह उनके जीवन का हिस्सा बन गया है। शब्बीर का कहना है कि ‘Ó साल में चार से पांच बार खून दान करने के बाद भी स्वस्थ रहने के पीछे संतुलित दिनचयाज़् की बड़ी भूमिका है। यह बात मुझे संतुष्टि देती है कि मेरे रक्त ने किसी की जिंदगी बचाई है।
रक्तदान से बचाया जा सकता है जीवन
एक दुखद घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि वह दिन आज भी याद है जब लाल बाजार में एक घर ढ़हने से लगभग 200 महिलाओं को चोटें आई थीं। उस समय हमें लगातार दो दिनों तक खून देना पड़ा। ऐसी घटनाओं से मुझे एहसास हुआ कि खून कैसे लोगों की जान बचा सकता है। रक्तदान करने के साथ ही शब्बीर ने एक सामाजिक मुहिम शुरू की है। वह श्रीनगर में रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए अभियान भी चलाते हैं। इसी के साथ अपनी टीम के साथ शहर के अस्पतालों में दौरा कर ऐसे मरीजों का पता लगाते हैं जिन्हें खून की जरूरत है।
युवा पीढ़ी आगे आए रक्तदान में
खास बात यह है कि श्रीनगर से बाहर जाकर भी उन्होंने इस काम को जारी रखा। वह ओडिशा, नई दिल्ली, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, जम्मू और भारत के विभिन्न हिस्सों में जरूरतमंदों के लिए रक्तदान कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि 2004 में दो महीने तक सुनामी प्रभावित क्षेत्रों में रक्तदान के जरिए लोगों को खून मुहैया कराया था। युवाओं के नाम खान का संदेश है कि युवा पीढ़ी अपना रक्त दान करने के लिए इच्छुक नहीं है। उन्हें लगता है कि पैसा सब कुछ है, लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए, रक्तदान करना और लोगों की जान बचाना भी अपने आप में एक उपासना है।