बुलावे का इंतजार
इसकी सर्वाधिक मार रोजगार पर पड़ी है। देश हो या विदेश सभी जगह रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। कुछ इसी तरहे के संकट का सामने कर रहे हैं जमशेदपुर के युवा श्रमिक। करीब 7 हजार श्रमिक पिछले छह महीने से बेरोजगार बैठे हैं। खाड़ी देशों से इन्हें बुलावा नहीं आ रहा है। खाड़ी देशों में भी कोरोना संक्रमण के चलते रोजगार सीमित हो गया है।
शटडाउन काम भी बंद
पहले खाड़ी देशों में शटडाउन का काम बोनस के रूप में जाना जाता था। शहर में किसी निजी संस्थान या फिर अपना निजी काम करने वाले, जिनके पास पासपोर्ट है, किसी कंपनी के शटडाउन होने पर उस कंपनी में आपात काल के लिए तीन महीने के लिए जाते थे। तीन महीनों में उन्हें बेहतर आमदनी होती थी। कोरोना वायरस के चलते शटडाउन में काम भी बंद है।
उड़ान की तैयारी पूरी है
लॉक डाउन के बाद हालात में कुछ सुधार के संकेत मिले हैं किन्तु खाड़ी देशों में जाने की प्रक्रिया काफी पेचीदगी भरी है। इसी कारण रोजगार दिलाने वाली एजेंसियां भी काफी सतर्कता से काम ले रही हैं। हालांकि करीब 2 हजार युवाओं के सारे दस्तावेज तैयार हैं। बस इंतजार है तो सिर्फ बुलावे का। इन युवाओं इंटरव्यू और मेडिकल तक हो चुका है।
फ्लाइट का पता नहीं
मार्च से पहले कुछ लोगों की बहाली के साथ उनका तीन महीने का वीजा खाड़ी देश की कंपनियों ने जारी कर दिया था। लेकिन, लॉकडाउन और कोरोना के चलते उनके वीजा की अवधि जब खत्म होने लगी तो उसका अवधि विस्तार किया गया। हालांकि, उनकी फ्लाइट कब होगी, किसी को पता नहीं।
रिस्क नहीं लेना चाहते संचालक
प्लेसमेंट एजेंसियों के संचालकों की माने तो अक्टूबर से बहाली की प्रक्रिया शुरू होने की उम्मीद है। जब तक विदेश यात्रा आसान नहीं हो जाती है, तब तक थोड़ी मुश्किल कायम रहेगी। नियुक्ति के लिए आवेदन तो आ जायेंगे, लेकिन इंटरव्यू, मेडिकल कैसे होगा और कब फ्लाइट होगी, यह स्पष्ट नहीं होने के चलते बहाली का कोई कार्यक्रम तय नहीं हो रहा है। वांट्स अब भी आ रहे हैं, लेकिन वे लोग कोई रिस्क नहीं लेना चाहते।
पासपोर्ट की संख्या में कमी
कोरोना का असर पासपोर्ट बनने पर भी पड़ा है। पहले जहां शहर में प्रतिदिन औसतन 75 से 80 पासपोर्ट के आवेदन जांच के लिए आते थे, अब उसकी संख्या घटकर 10 से 12 के बीच हो गई है। यानी जब विदेशों में नौकरियां नहीं हैं तो लोग पासपोर्ट भी बनवाना नहीं चाह रहे।