script‘ऊपर जिसका अंत नहीं उसे “आसमां” कहते हैं, इस जहाँ में जिसका अंत नहीं उसे “माँ” कहते हैं।’ | In this world, whose end is not, she is called "Mother" | Patrika News
जमशेदपुर

‘ऊपर जिसका अंत नहीं उसे “आसमां” कहते हैं, इस जहाँ में जिसका अंत नहीं उसे “माँ” कहते हैं।’

‘ऊपर जिसका अंत नहीं उसे “आसमां” कहते हैं, इस जहाँ में जिसका अंत नहीं उसे “माँ” कहते हैं।’मां को भगवान का दर्जा इसलिए दिया गया है। जिसकी ममता का कोई अंत नहीं। चाहे उसके (Jharkhan News) लिए अकेले ही स्कूटी से 1800 किलोमीटर (Mother drive scooty 1800 k.m.) का सफर क्यों न तय करना पड़े। पांच वर्षीय बेटे और पति को वाट्सएप पर शहर की फोटो भेजकर (Mother’s love) यकीन दिलाया कि जमशेदपुर पहुंच गई हैं।

जमशेदपुरJul 26, 2020 / 11:42 pm

Yogendra Yogi

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जमशेदपुर(झारखंड): ‘ऊपर जिसका अंत नहीं उसे “आसमां” कहते हैं,
इस जहाँ में जिसका अंत नहीं उसे “माँ” कहते हैं।’
मां को भगवान का दर्जा इसलिए दिया गया है। जिसकी ममता का कोई अंत नहीं। जो बच्चों के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। चाहे उसके लिए अकेले ही स्कूटी से 1800 किलोमीटर का सफर क्यों न तय करना पड़े। पांच वर्षीय बेटे और पति को वाट्सएप पर शहर की फोटो भेजकर यकीन दिलाया कि जमशेदपुर पहुंच गई हैं। (Jharkhand News ) यह एक मां की ही ममता है (Mother’s love ) जो खुद की जिन्दगी का खतरा (Mother drive scooty 1800 k.m. ) उठाते हुए अकेले कष्टभरी यात्रा की परवाह किए बगैर बेटे के पास ले आई। जमशेदपुर पहुंचने के बाद उसे टेल्को के क्वारंटाइन सेंटर भेज दिया गया। कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद वह घर जा सकी।

नौकरी छूटी, फुटपाथ पर रही
पूर्वी सिंहभूम के जमशेदपुर के कदमा की भाटिया बस्ती की रहने वाली सोनिया दास मुंबई में एक प्रोडक्शन कंपनी में फ्रीलांसर मैनेजर के पद पर कार्य कर रही थीं। वह जमशेदपुर से मुंबई महज एक माह के लिए फरवरी में गई थीं। उनका कार्य इसी तरह का होता है। उसके बाद वह जमशेदपुर अपने घर आ जाती हैं। लॉकडाउन लगने से फंस गई थी। उन्हें अप्रैल में जमशेदपुर लौटना था। कंपनी का कार्य समाप्त हो गया था। उनकी नौकरी भी समाप्त हो गई थी। जो वेतन मिले थे, घर के किराये में खत्म हो गए थे। करीब तीन माह भाड़ा नहीं दिया, तो मकान मालिक ने भी निकाल दिया। इस दौरान बड़ा पाव खाकर गुजारा करती रहीं। फुटपाथ पर रात गुजारनी पड़ी। जो थोड़ा बहुत पैसे था, उसी से स्कूटी में तेल भराकर पुणे में रहने वाली एक सहेली साबिया के पास रहने चली गईं।

बेटे ने कर दिया बैचेन
बेटे की तबियत खराब होने की सूचना ने सोनिया को बैचेन कर दिया। उनका बेटा ध्रुव ज्योति लंबी दूरी की वजह से डर गया था। वह आरके मिशन इंग्लिश स्कूल बिष्टुपुर में पढ़ता है। पति का हार्ट का ऑपरेशन हुआ है। इस कारण वह बहुत ज्यादा काम नहीं कर पाते हैं। अपने बेटे पर पूरा ध्यान देते हैं। लॉकडाउन के कारण उनका बेटा डिप्रेशन में जा रहा था, जिसके कारण वह मुंबई में परेशान हो गयी थी। एक माह पुणे में उसी दोस्त के घर ठहरी थीं। बेटा पति के साथ था। फिर भी सोनिया बेटे से मिलने के लिए बेचैन हो गईं। मुंबई-पुणे से कोई ट्रेन झारखंड नहीं आ रही थी। बेटा लगातार रो रहा था। तब उनके पुणे के दोस्त ने चंदा जुटाकर सोनिया दास को पांच हजार रुपये दिए। उसी से स्कूटी में तेल भरवाकर 20 जुलाई को जमशेदपुर के लिए रवाना हुईं।

रोज चली 300 किमी
वह लगातार स्कूटी चलाती रहीं। तीन जगहों पर ढाबे और लगभग 9 जगहों पर पेट्रोल पंप पर रुकीं। रात को थाने या किसी सुरक्षित क्षेत्र में रूक जातीं। सुबह होते सफर पर निकल पड़तीं। हर दिन लगभग 300 किमी का सफर स्कूटी से तय कर शुक्रवार शाम सात बजे जमशेदपुर पहुंचीं। रास्ते भर मोबाइल से तस्वीरें भेजती रहीं। जब दोमुहानी घाट जमशेदपुर लिखे बोर्ड की तस्वीर बेटे को वाट्सएप किया तो उसे यकीन हुआ कि मां जमशेदपुर पहुंच गई है। इसके बाद उन्हें टेल्को के क्वारंटाइन सेंटर भेज दिया गया। कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव आने पर जमशेदपुर अक्षेस के विशेष पदाधिकारी कृष्ण कुमार और डीएसपी अरविंद कुमार ने सोनिया को 5000 हजार रुपये की आर्थिक सहायता के अलावा एक माह का राशन और उसके पुत्र को फल प्रदान किए। घर पहुंचने के बाद वह अपने पांच साल के बेटे को देखकर फूट-फूट कर रोयी

एक मां की पुकार किसी नहीं सुनी
सोनिया जमेशदपुर जाने के लिए जहां हो सकता था, वहां गुहार की, पर किसी ने उसकी सुनवाई नहीं की। मुंबई में फंसे होने की जानकारी उसने अभिनेता सोनू सूद के अलावा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ट्वीट के माध्यम से दी थी। मुंबई तथा जमशेदपुर के जिला प्रशासन से भी जमशेदपुर आने देने के लिए अनुमति देने का अनुरोध किया, पर किसी ने नहीं सुनी। उनके पति जो खुद हार्ट के मरीज हैं, ने खुद जमशेदपुर के उपायुक्त को आवेदन दिया। इसका भी लाभ नहीं मिला।

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