जनगणना का करेंगे बहिष्कार
विभिन्न गांव के माझी बाबा नायके, गोडेत एवं संथाल समाज के सांवता दुलाडिया की उपस्थिति में नगाड़ा बजाते हुए माझी परगना महाल ने सरकार के समक्ष अपनी मांगों को रखा। महाल की मांगों में 2021 में होने वाले जनगणना से पहले आदिवासियों के सरना धर्म को मान्यता देते हुए अलग धर्मकोड कॉलम को जनगणना में शामिल करना शामिल है। उन्होंने कहा कि अन्यथा आदिवासी पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था माझी परगना महाल जनगणना का विरोध करते हुए जनगणना का बहिष्कार करेगा। कोरोना संक्रमण को देखते हुए कार्यक्रम में शारीरिक दूरी का अनुपालन करते हुए यह बैठक आहूत की गई।
भाजपा व संघ नहीं चाहते
आगामी 2021 की जनगणना को लेकर देश के ट्राईबल समुदाय सरना धर्म कोड के लिए आंदोलनरत हैं, वहीं झारखंड में संघ व भाजपा के लोग आदिवासियों के बीच इस प्रचार में लगे हैं कि 2021 की जनगणना प्रपत्र में वे हिन्दू धर्म लिखवाएं। जबकि अंग्रेजी शासन काल में ट्राईबल्स के लिए ट्राईबल रिलिजन कोड था, जिसे ट्राईबल समुदाय के लोग आदिवासी धर्म भी लिखवाते थे। आजादी के बाद 1951 में इसे खत्म कर दिया गया।
गोवंश पशु हत्या अधिनियम निरस्त करने की मांग
आदिवासियों की बैठक में झारखंड में संथाली भाषा को राजभाषा का दर्जा देते हुए ओलचिकी लिपि की पढ़ाई केजी से पीजी तक प्रारंभ करने, पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार दिलाने, पांचवी अनुसूची प्रावधानों को लागू करने, राज्य के गलत स्थानीय नीति को निरस्त करते हुए पुन: खतियान के आधार पर अंतिम सर्वे सेटेलमेंट को मानते हुए स्थानीय नीति बनाने की मांग शामिल है। इसके अलावा सीएनटी-एसपीटी एक्ट को सख्ती से लागू करने, सरकारी गैरमजरूआ एवं वन भूमि पर सदियों से रह रहे आदिवासियों को पट्टा देने, टीएसी में आदिवासी पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के प्रतिनिधियों को शामिल करने और राज्य में झारखंड गोवंश पशु हत्या प्रतिशोध अधिनियम 2005 को निरस्त करने की मांग की गई है।
83 प्रकार के धर्म
राष्ट्रीय आदिवासी—इंडीजीनस धर्म समंवय समिति का संयोजक अरविंद उरांव कहत हैं कि लगभग 800 प्रकार के आदिवासी/ जनजातियों का लगभग 83 प्रकार के धर्म हैं। आदिवासी प्रकृति को पूजते हैं,आदिवासियों की यह मान्यता है कि प्रकृति है, तभी जीवन है, और हम आदिवासी सरना धर्म को मानते हैं। आदिवासियों के पास अपना सरना धर्म होते हुए भी सरना धर्म को पहचान सरकार से नहीं मिली है। जनगणना में भी सरना कोड नहीं होने के कारण हमें दूसरे धर्म के कॉलम में भरने को मजबूर किया जाता है, जिसके कारण दिन प्रतिदिन सरना आदिवासियों की जनसंख्या का विलय होता जा रहा है।