scriptप्रकृति के वरदान से चमन बनने के बजाए कंगाली की हालत में यह जिला | Instead of growth from the boon of nature, this district is backward | Patrika News
जमुई

प्रकृति के वरदान से चमन बनने के बजाए कंगाली की हालत में यह जिला

(Bihar News ) जमुई को प्रकृति का ऐसा वरदान है कि यह जिला (Boon of nature ) विश्वपटल पर अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा सकता है। जरुरत है जमुई के प्राकृतिक संसाधनों (Natural resources ) को आधुनिक तकनीक और बाजार (Add marketing ) से जोडऩे की है। जमुई के जंगलों में ऐसी वनोषधियां पाई जाती हैं, जिनकी बाजार में बेइंता कीमत है, किन्तु अनभिज्ञता और व्यवसायिक दृष्किोण की कमी से इन औषधियों का कोई उपयोग नहीं हो रहा है।

जमुईJul 04, 2020 / 05:54 pm

Yogendra Yogi

प्रकृति के वरदान से चमन बनने के बजाए कंगाली की हालत में यह जिला

प्रकृति के वरदान से चमन बनने के बजाए कंगाली की हालत में यह जिला

जमुई (बिहार): (Bihar News ) जमुई को प्रकृति का ऐसा वरदान है कि यह जिला (Boon of nature ) विश्वपटल पर अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा सकता है। जरुरत है जमुई के प्राकृतिक संसाधनों (Natural resources ) को आधुनिक तकनीक और बाजार (Add marketing ) से जोडऩे की है। जमुई के जंगलों में ऐसी वनोषधियां पाई जाती हैं, जिनकी बाजार में बेइंता कीमत है, किन्तु अनभिज्ञता और व्यवसायिक दृष्किोण की कमी से इन औषधियों का कोई उपयोग नहीं हो रहा है। यही वजह है कि बेरोजगारी बढ़ रही है और आमदनी में इजाफा नहीं हो रहा है।

प्रचुर औषधीय पेड़
जमुई में बेल, जामुन, आम, सहजन, करौंदा, पीपल, बरगद सहित कई प्रकार के पेड़ पाए जाते हैं। दस-पंद्रह साल पूर्व तो सहजन लगभग हर घर में पाया जाता था। आज भी गांवों में सहजन का पेड़ दिख जाता है। इन सबके बावजूद आश्चर्य इस बात का कि जिले में एनिमिया रोग से ग्रस्त महिलाओं की संख्या 63 प्रतिशत है। घरों और जंग में सहजन जैसी दवाई होने के बावजूद ग्रामीण महिलाएं एनिमिया से पीडि़त हैं।

यहां कौडियों के भाव
जिले के चकाई, बरहट, अलीगंज, लक्ष्मीपुर सहित सभी प्रखंडों में सहजन व जामुन का पेड़ दिखना आम बात है। शहरों में सहजन की फली सौ से दो सौ रुपये तक बिकती है तो जामुन भी महंगी बिकती है। सहजन की पत्तियों का चूर्ण 1200 रुपये तो साबूत पत्तियां चार सौ रुपये तक बिकती है। यहां इसे कोई कौड़ी के भाव नहीं पूछता। अगर इन उत्पादों को बाजार मिल जाए तो लोगों की आमदनी में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हो जाएगी। कृषि विज्ञानी डॉ. सुधीर कुमार सिंह बताते हैं कि प्रकृति से हमें हर चीज मिली है बस जरूरत ध्यान देने की है। जमुई में सहजन, जामुन, बेल, आंवला की खेती के लिए आबोहवा अनुकूल है। इन उत्पादों का बाजार मुहैया होने से किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सकती है। साथ ही ये पौधे पयाग्वरण के लिहाज से अच्छे पेड़ की श्रेणी आते है।

जागरुकता की कमी
कृषि विज्ञानी सिंह ने अनुसार जिले में सहजन को लेकर जागरुकता की कमी है। लोग इसके पौष्टिक गुण से अनजान हैं। सहजन के सेवन से एनिमिया रोग दूर हो सकता है। लोगों को जागरूक करने के लिए संबंधित विभाग द्वारा जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। इसके अलावा आमदनी बढ़ाने के लिए वैल्यू एडेड उत्पाद तैयार करने की भी जरूरत है। ताकि किसान इन उत्पादों से तैयार प्रोडक्ट को बाजार में उतार सके। इसके लिए वृहत पैमाने पर प्रशिक्षण कार्यक्रम की आवश्यकता है। मूल्य सवंर्धित उत्पाद से किसानों को सही कीमत मिल सकेगी और उनकी आमदनी में वृद्धि होगी।

सागवान की लालसा
कुछ सालों में लोगों की सोच बदली और पौधारोपण पर जोर बढ़ा है। पर्यावरण संतुलन के उद्देश्य से प्रचार-प्रसार के कारण लोग पेड़ लगाने को लेकर गंभीर हुए हैं, लेकिन इन पौधों में बरगद या पीपल के पौधों की अपेक्षा भविष्य में करोड़पति बनने की लालसा से सागवान की खेती पर जोर है। लोग निजी जमीन पर सागवान की जमकर खेती कर रहे हैं। कमोबेश हर गांव में जगह-जगह पर समूह में लगाए गए सागवान के पेड़ का बगीचा नजर आ जाएगा। हालांकि सागवान पेड़ भी औषधीय गुण से परिपूर्ण है। जमुई के जंगलों में पूवज़् से ही वृहत पैमाने पर पाया जाता है। उंची कीमत के कारण इसकी अवैध कटाई भी होती है।

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