उक्त बातें अक्षर साहित्य परिषद एवं महादेवी महिला साहित्य समिति के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित हिंदी दिवस समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से वीणा साहू ने व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ माता सरस्वती की तस्वीर के समक्ष अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन पूजन अर्चन कर किया गया।
कार्यक्रम के प्रथम सत्र में संगोष्ठी में अपने विचार रखते हुए परिषद के वरिष्ठ संरक्षक डॉ हरिहर प्रसाद सराफ ने कहा कि हिंदी को पुन: स्थापित करने के लिए हमें एकजुट होकर अपने व्यवहार में इस को शामिल करना होगा। संरक्षक कैलाश अग्रवाल ने बताया कि धीरे-धीरे हिंदी देश की आत्मा के रूप में स्थापित होती जा रही है।
महादेवी महिला साहित्य समिति के अध्यक्ष एवं कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि सुशीला सोनी ने विचार रखा की राष्ट्रभाषा से ही राष्ट्र की पहचान होती है और स्वाभिमान महकता है।परिषद के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमाकांत सोनी ने कहा कि राष्ट्र भाषा के दर्पण में राष्ट्र की संस्कृति सभ्यता एवं ऐतिहासिकता का प्रतिबिंब झलकता है। कार्यक्रम के एवं परिषद के अध्यक्ष रामनारायण प्रधान ने प्रथम सत्र का संचालन करते हुए हिंदी को पुन: स्थापित करने पर जोर देते हुए हिंदी की दशा और दिशा पर प्रकाश डाला।
Read more : जांजगीर-नैला पहुंचते ही एसईसीआर के जीएम को लोगों ने घेरा, जानें किस बात को लेकर बनाया दबाव लक्ष्मी सोनी ने अपने विचार रखते हुए हिंदी भाषा की वैज्ञानिकता स्वर व्यंजन की ध्वनियों मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति में हिंदी की सार्थकता को उल्लेखित किया। सत्यभामा साहू ने बताया कि प्राचीन काल में वैदिक भाषा संस्कृत का प्रचलन था जो कि बाद में प्राकृत अपभ्रंश खड़ी बोली के रूप में विकसित होते हुए आज हमें हिंदी भाषा के रूप में प्राप्त हुई है।
संगीता पांडे ने कहा कि हिंदी अत्यंत सुगम सरल भाषा है इसे सभी को अपनाना चाहिए पुरुषोत्तम देवांगन ने हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में विकसित करने पर जोर दिया। आशा सोनी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि भाषा रोजगार परक एवं यथार्थ के करीब होनी चाहिए। कल्याणी सोनी ने आह्वान किया कि हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने का हमें संकल्प लेना चाहिए एवं पद अनुरूप आचरण एवं व्यवहार में उसे शामिल करना चाहिए। कार्यक्रम के काव्य सत्र का संचालन करते हुए अन्नपूर्णा सोनी ने काव्य पूर्ण संचालन के साथ क्रमश: कवियों को काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया।
जिसमें डॉक्टर हरिहर प्रसाद सराफ ने कविता इस रूप में कहीं कि पांव मेरे ओस में जलने लगे हैं अश्क मेरी आंख को छलने लगे हैं। सांप अब तो बाबियों को छोड़कर एआस्तिनों में अधिक पलने लगे हैं। डॉ. रमाकांत सोनी ने अपने कविता पाठ में कहा कि राष्ट्र प्रेम की ज्योत जलाकर करे वंदना आरती जय हिंदी जय भारती। महेश राठौर ने क्षणिकाओं के साथ अपनी कविता का पठन किया।