प्रदेश के उत्तर-पूर्व पर स्थित जशपुर जिला स्वास्थ्य के मामले में विकसित नहीं हो सका है। कई मामलों में यहां के लोग आज भी झारखंड के रांची, गुमला के अलावा रायगढ़ व अंबिकापुर जिले पर निर्भर हैं। बीते कुछ सालों में जिला अस्पताल में अधोसंरचना का काफी विकास हुआ है। यहां सर्व सुविधायुक्त ऑपरेशन थियेटर के अलावा मानक स्तर का आईसीसीयू भी है। अब नया ऑपरेशन थियेटर आईसीसीयू के पास बनाया गया है। जिसमें जिला खनिज न्यास मद से आधुनिक ऑपरेशन टेबल, शैडोलेस ओटी लैंप आदि लगाए जाएंगे। थियेटर में लगने वाले सभी समान पंहुच भी चूके हैं। लेकिन जिले को अभी भी एनेस्थेसिया विशेषज्ञ का इंतजार है। लोगों को आशंका है कि कहीं नया ओटी भी एनेस्थेसिया विशेषज्ञ की कमी के कारण अनुपयोगी न हो जाए।
एनेस्थेसिया विशेषज्ञ थे स्टाफ तक को पता नहीं : जानकारी के मुताबिक 2005-06 में बिलासपुर के एनेस्थेसिया विशेषज्ञ की यहां पदस्थापना हुई थी। सूत्र बताते हैं कि वे कभी आते थे, कभी नहीं आते थे। वे यहां पदस्थ थे, इसकी जानकारी जिला अस्पताल में पदस्थ कई चिकित्सकों व स्टॉफ तक को नहीं है। करीब 2012 में उनका स्थानांतरण हो गया। जिसके बाद से जिला अस्पताल में एनेस्थेसिया विशेषज्ञ का पद रिक्त पड़ा हुआ है। जिसके कारण यहां बड़ी सर्जरी नहीं हो पा रही है। जिसके कारण ऐसे मरीजों को बाहर जाना पड़ रहा है।
दो सर्जन पदस्थ, लेकिन बड़े ऑपरेशन नहीं : जिला अस्पताल में सर्जन के रूप में डॉ.उषा लकड़ा पदस्थ हैं। वहीं आर्थो सर्जन डॉ. अनुरंजन टोप्पो भी यहां पदस्थ हैं। ये सर्जन अपनी योग्यता से लोकल एवं स्पाइनल एनेस्थेसिया में छोटी सर्जरी तो कर रहे हैं। लेकिन एनेस्थेसिया विशेषज्ञ के नहीं रहने पर ये बड़ी सर्जरी नहीं कर पा रहे हैं। बताया जाता है कि हर सर्जन के पास हर दिन दो या तीन ऐसे केस आते हैं, जिन्हें सर्जरी करने के लिए बाहर रेफर करना पड़ता है। अगर यहां एनेस्थेसिया विशेषज्ञ पदस्थ हो जाएं, तो उनकी सर्जरी जिला अस्पताल में भी की जा सकती है।