scriptपारम्परिक हर्षोल्लास और रीति रिवाज से मनाया सरहुल का पर्व | sarhul festival celebrated with joy in jashpur | Patrika News
जशपुर नगर

पारम्परिक हर्षोल्लास और रीति रिवाज से मनाया सरहुल का पर्व

आदिवासी संस्कृति का प्रतीक सरहुल नृत्य

जशपुर नगरApr 20, 2019 / 02:54 pm

Amil Shrivas

sarhul

पारम्परिक हर्षोल्लास और रीति रिवाज से मनाया सरहुल का पर्व

जशपुरनगर. चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर शुक्रवार को जशपुर के दीपू बगीचा में आदिवासी समाज के द्वारा आदिवासियों का महापर्व सरहुल पर्व परंपरागत रीति-रिवाज से मनाया गया। सुबह सबसे पहले सरना माता एवं भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की गई और आदिवासी संस्कृति का प्रतीक सरहुल नृत्य से समाज को प्रकृति के महत्व के बारे में सीख दी कई।
इस मौके आदिवासी समाज को संबोधित करते हुए जशपुर विधायक विनय भगत ने कहा कि सरहुल पूजा नववर्ष के स्वागत का प्रतीक है और सरहुल पर्व अनादिकाल से चैत्र मास के पूर्णिमा के दिन ही मनाया जाता रहा है। इस पर्व को अमावस्या में नहीं मनाया जा सकता। आदिवासी संस्कृति का जन्म और विकास प्रकृति के गोद में हुआ है, इसलिए आदिवासियों के पर्व एवं पूजापाठ प्रकृति से जुड़े हुए है। इसके साथ ही इसके महत्व के संबंध में नगर पालिका अध्यक्ष हीरु राम निकुंज ने कुडुक भाषा के लोक गीत चांदो इंदर चंदो हेके, कुल लेखे आरेगा लागी के माध्यम से वक्ताओं ने यह बताने की कोशिश की कि सरहुल चैत्र पूर्णिमा को ही मनाया जाता। उन्होंने इस गीत का अर्थ बताते हुए कहा कि ये बड़ा चांद वही चांद है, जो पूर्णिमा के दिन एक बड़े छाते के तरह नजर आता है। यह गीत अनादिकाल से आदवासियों के पूर्वजों के द्वारा गाया जाता रहा है। जिसका परिपालन आदिवासी समाज कर करता रहा है।

सरहुल किसी व्यक्ति या पार्टी का पर्व नहीं : कृपा शंकर भगत ने कहा कि सरहुल किसी व्यक्ति या पार्टी का पर्व नहीं है। सरहुल हम सब का पर्व है। जो हमारी संस्कृति व परंपरा को राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करने के लिए मिटाना चाहते हैं, वे अपने मंसूबों में कामयाब नहीं होंगे। सरहुल पर्व हमारी समृद्ध संस्कृति, एकता और प्रकृति से आदिवासियों का लगाव है।

Home / Jashpur Nagar / पारम्परिक हर्षोल्लास और रीति रिवाज से मनाया सरहुल का पर्व

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो