करीब दो साल पहले जब मुन्ना बजरंगी झांसी की जेल में बंद था तो सुनील राठी का भाई भी इसी जेल में लाया गया। मुन्ना बजरंगी को मालूम हुआ तो उसने राठी के भाई को अपनी छत्रछाया में ले लिया। अब वो बजरंगी के संरक्षण में ही रहने लगा था। रूड़की जेल में बंद सुनील राठी को पता चला तो उसे भी इत्मिनान हो गया कि उसका भाई सुरक्षित हाथों में है। अब जेल में उसे कोई मुसीबत उठानी नहीं पड़ेगी। यही वो वक्त था जब सुनील राठी और मुन्ना बजरंगी में बातचीत शुरू हुई। दोनों की नजदीकियां बढ़ीं। जरायम की दुनिया के तजुर्बे एक दूसरे से साझा किए जाने लगे। जेल के भीतर गुटबाजी शुरू हुई तो बजरंगी को वहां से पीलीभीत जेल में शिफ्ट कर दिया गया।
राठी के भाई को भी दूसरे जेल में डाल दिया गया, लेकिन तब तक दो माफियाओं का मिलन हो चुका था। उनके बीच रिश्तों का बीज पड़ चुका था। हालात सामान्य होने पर बजरंगी को फिर से झांसी जेल में बंद कर दिया गया। सुनील राठी भी बजरंगी की काफी इज्जत करता था। दोनों में इतनी नजदीकी थी कि जेल से ही अकसर फोन पर बात हुआ करती। सूत्रों की मानें तो तब से मुन्ना और सुनील में बातचीत जारी थी। करीब डेढ़ साल पहले सुनील राठी को रूड़की से बागपत जेल लाया गया। इधर रंगदारी के एक मामले में मुन्ना बजरंगी की पेशी बागपत में होनी थी। हत्या से करीब 10 दिन पहले पत्नी सीमा सिंह ने प्रेस कांफे्रंस कर इस बात की आशंका जताई कि उसकी पति की हत्या की जा सकती है।
मुन्ना बजरंगी भी इस बात से सहमा हुआ था। सूत्रों की मानें तो 8 जुलाई को बागपत जाने से पहले उसने सुनील राठी से भी बात की। वहां से आश्वासन मिला तो बजरंगी खुशी-खुशी बागपत पहुंचा। वो इस बात से भी अंजान था कि बागपत को सफर उसकी जिंदगी का आखिरी सफर होगा। 9 जुलाई की सुबह करीब साढ़े 6 बजे मुन्ना बजरंगी को 10 गोली मारी गई। आरोप है कि सुनील राठी ने ही उसकी हत्या करने के बाद पिस्टल गटर में डाल दिया। अब सवाल ये भी खड़ा हो रहा है कि इतने अच्छे संबंध होने के बाद राठी ने बजरंगी को मौत की नींद क्यों सुला दिया। कहीं किसी साजिश का शिकार तो नहीं हुआ पूर्वांचल का डान।