जिला प्रशासन की असंवेदनशीलता यहीं खत्म नहीं हुई। रविवार सुबह जब गांवों में गुजरात की एंबुलेंस में शवों को लाया गया, उस समय तक भी कोई अधिकारी संबंधित गांवों में नहीं पहुंचा था। प्रभारी मंत्री सुरेंद्रसिंह बघेल को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने कलेक्टर प्रबल सिपाहा का मृतकों के परिजन को हर संभव सहायता के आदेश दिए। तब जाकर कलेक्टर सिपाहा ने झाबुआ और थांदला एसडीएम को मौके पर जाने को कहा। शव आने के लगभग दो घंटे बाद अधिकारी गांव में पहुंचे। झाबुआ विकासखंड के ग्राम नवागांव में एसडीएम अभयसिंह खरारी पहुंचे तो वे पहले यह पता करने में लग गए कि जिस परिवार में मां और तीन बच्चों की मौत हो गई है। उस परिवार के मुखिया अंत्येष्टी के लिए 5-5 हजार (प्रत्येक मृतक के लिए अलग-अलग) की सहायता राशि दिए जाने के लिए पात्र है या नहीं। इसके पीछे उनका तर्क था कि परिवार 15 साल से गांव में नहीं रहा है। न ही उनका वोटर आईडी है और न ही समग्र आईडी में नाम है। हालांकि बाद में मानवीय दृष्टिकोण को अपनाते हुए एसडीएम ने प्रत्येक मृतक के मान से कुल 20 हजार रुपए की सहायता राशि प्रदान की। इसके अलावा एसडीएम ने पीडि़त परिवार के लिए 50 किलो गेहूं, 50 किलो चावल, 10 किलो शकर और 5 लीटर केरोसिन की व्यवस्था और मृतकों की अंत्येष्टी के लिए 25 क्विंटल लकड़ी का इंतजाम भी कराया। दोपहर में चारों का एक साथ अंतिम संस्कार किया गया।
हादसे की पूरी कहानी, पीडि़त सेनू की जुबानी- गुजरात के मोरवी शहर में हुए हादसे में ग्राम नवागांव के सेनू खराड़ी की पत्नी और तीन बच्चों की मौत उसकी आंखों के सामने ही हुई। उस खौफनाक मंजर को याद करते हुए सेनू ने बतायाकि दो दिन से लगाता हो रही बरसात के चलते छुट्टी थी। ऐसे में सभी लोग मोरवी के कांडला बायपास रोड पर दीवार के पास बनी अपनी-अपनी झोपड़ी में बैठे थे। सेनू बाहर था। उसने मुताबिक ऊपरी क्षेत्र में स्थित नहर का पानी एक साथ बहता आ गया। इससे हमारी झोपड़ी से लगी दीवार भरभराकर ढह गई। मलबे में उसकी पत्नी कसमा (30), बेटा अंकलेश (14), बेटी ललिता (16) और दूसरी बेटी तेजल (13) दब गई। इससे उनकी मौत हो गई।
सोनू के अनुसार उनकी झोपड़ी के पास ही थांदला क्षेत्र के भी ग्रामीण रहते थे। दीवार ढहने से वे भी दब गए। उनमें से ग्राम बेड़ावा के विकेश मुंडा डामोर (20), उसकी पत्नी कलिता विकेश डामोर (18) तथा ग्राम टीमरवानी की आशा पूंजा अमलियार (15) व कालीबेन अनूभाई डामोर (18) की मौत हो गई। इसके अलावा अजय सेनू खराड़ी (8), विकलीबेन (25), नेहरूबेन तोलिया अमलियार (18) व रेखा राजेश (18) को चोट लगी। इन चारों को मोरवी के अस्पताल में भर्ती कराया गया।
सेनू परिवार के चार लोगों के शव लेकर घर लौटा-
अपनों को खोने का दर्दक्या होता है कोई सेनू खराड़ी से पूछे। नवागांव के महुड़ी फलिए में रहने वाला सेनू पिछले 15 सालों से परिवार सहित सीमावर्ती गुजरात राज्य में रहकर मजदूरी कर रहा था। तीज-त्योहार और अन्य विशेष अवसरों पर ही वह गांव में स्थित अपने घर आता था। रविवार सुबह वह अपने परिवार के साथ लौटा तो सही लेकिन चार लाशों को लेकर। इसमें उसकी पत्नी कसमा, बेटी ललिता व तेजल और बेटा अंकलेश शामिल था। अब परिवार में सेनू के अलावा उसका तीन बेटे विनोद (18), दिपेश (9) व अजय (8) बचे हैं। रविवार सुबह करीब 10 बजे गुजरात से शव लेकर आई एंबुलेंस सेनू के घर तक रास्ता नहीं होने से शवों को सड़क पर ही छोड़कर चली गई। यहां से गांव के अन्य लोगों ने दो लकडिय़ों में चादर बांधकर चार झोलियां बनाई और फिर शवों को कंधे पर उठाकर खेतों के अंदर से होते हुए करीब 800 मीटर दूर स्थित उसके घर पहुंचे। ये प्रशासन की अकर्मण्यता और असंवेदनशीलता ही है कि इस समय तक एक भी अधिकारी यहां नहीं पहुंचा था।