झाबुआ

पूरे राज्य में लागू होगा झाबुआ मॉडल, जानिए क्या है इसमें खास

इस जिले ने 9 माह में एक लाख लोगों को बना दिया साक्षर…। ऐसे फैलता गया शिक्षा का उजियार…।

झाबुआMay 06, 2022 / 04:44 pm

Manish Gite

लोकमणि शुक्ला

झाबुआ। प्रदेश में हमेशा पिछड़ा रहने वाला आदिवासी बहुल इलाका अपनी अलग पहचान बना रहा है। आदिवासी इलाके के लोग जहां कम पढ़े-लिखे थे, अब इस जिले ने कमाल कर दिखाया है।

प्रदेश के दूसरे सबसे कम साक्षर वाले जिले ने महज नौ महीने में एक लाख लोगों का साक्षर बनाया है। जो कभी स्कूल नहीं गए, उन्हें नाम लिखना और हस्ताक्षर कर सम्मान ने जीना सीखाया है। नौ महीने के अंदर साक्षरता व लोगों को अक्षर ज्ञान का उजियारा बनाने वाला झाबुआ मॉडल अब पूरे प्रदेश में लागू किया जाएगा।

झाबुआ मॉडल के आधार पर लोगों को साक्षर करने का प्रयास किया गया। राज्य स्तरीय समीक्षा बैठक में संचालिक धनराजू एस ने झाबुआ मॉडल को पूरे प्रदेश में लागू करने का निर्देश दिया है।

 

 

नव भारत साक्षरता कार्यक्रम में तहत कलेक्टर सोमेश मिश्रा ने 15 अगस्त 2021 को अ से अक्षर अभियान की शुरुआत की थी। इसमें 18 वर्ष से ऐसे लोग जो किसी कारण वश स्कूल नहीं गए उन्हें आधार भूत शिक्षा से जोडऩे यह अभियान चलाया गया है। इस अभियान के पहले चरण में पेटलावद और थांदला की 50 ग्राम पंचायतों का सर्वे कर किया है। इसमें 27207 लोगों ने पढऩे की इच्छा जताई। इसमें 21245 लोगों ने अपनी इच्छा से नियमित कक्षा में शामिल होने हुए ।इसके बात जनवरी में पहली बार आयोजित परीक्षा में 17421 लोगों ने परीक्षा में भाग लिया है। इसमें 14हजार लोग परीक्षा में उर्त्तीण हुए। इसके बाद दूसरे चरण में 85 हजार लोग परीक्षा पास हुए । इस परीक्षा में प्रदेश में सबसे झाबुआ के सबसे अधिक परीक्षा में लोग शामिल हुए थे।

 

इसमें बुजूर्ग लोगों ने पढ़ने की जताई इच्छा

इस अभियान में के दौरान बुजूर्ग लोगों ने साक्षर होने की जताई इच्छा भी। इसमें 80 से 85 वर्ष के नियमित कक्षा में शामिल हुए और परीक्षा में शामिल हुए है। इनमें बड़ी संख्या महिलाओं की भी है। जिन्होंने अपने काम के साथ अक्ष र ज्ञान प्राप्त साक्षर बनी है।

 

भिल्ली भाषा में नाटक व संगीत कहानी से किया साक्षर

जिले में लोगो को साक्षर बनाने के लिए पुलिस ने स्थानीय स्तर में भिली भाषा में नाटक एवं संगीत कहानी व अन्य मनोरंजन के माध्यम से लोगों को साक्षर किया गया। लोग दिन के समय अधिकांशत काम में बाहर होते थे। ऐसे में उन्हें शिक्षित करने के लिए शाम को कक्षाए संचालित होती थी। इतना ही लोगों में अक्षर ज्ञान देने के लिए खेतों में भी कक्षाए लगाई।

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