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झाबुआ

मंडी वीरान, किसानों को बाजार में बेचनी पड़ रही फसल

-मंडी पर रसूखदारों का कब्जा, भारी बारिश के बाद बची-खुची फसल के भी नहीं मिल रहे दाम, दस महीने लगातार बंद रहने के बाद बचे दो माह में भी नहीं लग रही मंडी में बोली, मंडी से लौट रहे किसान

झाबुआOct 17, 2019 / 06:46 pm

kashiram jatav

मंडी वीरान, किसानों को बाजार में बेचनी पड़ रही फसल

मंडी वीरान, किसानों को बाजार में बेचनी पड़ रही फसल

राणापुर. प्रदेश में कई जगहों पर रोजाना मंडी में व्यापार होता है। जहां पर वहां किसानों को उनकी उपज का सही दाम सहित तोल मिलता है, लेकिन झाबुआ जिले में जिला मुख्यालय एवं राणापुर मंडियों पर मंडियों रसूखदारों ने कब्जा कर रखा है । मंडी चालू नहीं होने से किसानों को अपनी उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाता है और मजबूर किसान अपने आर्थिक स्थिति के कारण बाजार में व्यापारी को कम दाम में अपनी उपज बेच देता है। राणापुर उप मंडी वीरान पड़ी है।
भारी बारिश से नुकसान के बाद मंडी में बची खुची फसल बेचने आए किसान बाजार में कम दामों में फसल बेच रहे हैं। मंडी के यह हाल है कि साल के 10 महीने मंडी वीरान पड़ी रहती है। किसी प्रकार का कोई व्यापार नहीं होता। जबकि साल में केवल 2 महीने ही मंडी में व्यापार किया जाता है। इसमें भी केवल हफ्ते एक दिन शनिवार बाज़ार के दिन मंडी चलाई जाती है। बाकी 10 महीनों में फ सलें किसान मजबूरी में खुले बाजार में व्यापारियों की प्रतिष्ठानों पर कम भाव में माल को बेच देता है। बाजार में व्यापारी किसानों को उनकी उपज का उचित भाव नहीं देते और मजबूर किसान अपनी आर्थिक स्थिति को देखते हुए जो व्यापारी उपज की रकम देता है उसे ले लेता है।
अवैध रूप से गुजरात जा रहा है माल-
किसानों से कम भाव में उपज खरीद कर मोटा मुनाफा कमाने के चक्कर में व्यापारी अवैध रूप से ट्रक में माल लोड करके गुजरात के दाहोद पहुंचा रहे हैं। व्यापारी द्वारा गुजरात पहुंचाया जा रहे है। माल का किसी भी प्रकार का मंडी को टैक्स दिए बिना बिना अनुज्ञा पत्र जारी किए माल को पहुंचाए जा रहा है।
पलायन को मजबूर होते हैं किसान-
किसानों को अपनी लागत मूल्य से भी कम उपज का दाम मिलता है। इस कारण किसान को परेशान करना पड़ता है इसलिए उन्हें परिवार के भरण-पोषण के लिए मजबूरी में गुजरात की ओर पलायन करना पड़ता है
व्यापारी मारते है तौल काटे में-
वही किसानों का शोषण आज से नहीं कई वर्षों से हो रहा है। किसान अपनी माल को बेचने तो कई व्यापारी तोल काटों में लीटर में सेट कर देते है। इससे एक किलो अनाज 800 ग्राम ही बताता है। प्रतिदिन कितने किलो माल किसानों मारते होगे। अभी कुछ समय पूर्व ही राणापुर उपमंडी में किसानों ने व्यापारियों को तोल काटा मारते पकड़ा था। इसके बाद किसानों मंडी में जमकर हंगामा किया था। अपनी उपज सही तोल करवाकर रुपए लिए थे। किसानों बाज़ार भाव नहीं मिलने से कई किसान जो धन से सम्पन्न है वह तो अपना माल वापस घर ले जा रहे। ज्यादा भाव आने इंतज़ार करते हैं। वही कमजोर किसान जो बोवनी बाज़ार में से रूपये ब्याज पर लेकर खेती करते हैं। वह किसान मज़बूरी में अपना माल बाजार में नुकसान उठा कर बेचना पढ़ रहा है। इससे किसान दिन प्रतिदिन दबता जा रहा है।
मंडी चालू के नाम पतीला लगा रहे है-
सन 1982 मे मंडी मे झाबुआ मंडी की स्थापना हुई। जब ही राणापुर उप मंडी का भीए तब ऐसा अब मंडी मे व्यापार होगा तो किसानों उनकी उपज का सही दाम मिलेगा, लेकिन मंडी चालू होने के नाम पर केवल पतीला लगा रहे 2 महीने में हफ्ते 1 दिन चलाते हैं। बाकी के दिनों में मंडी चालू नहीं होने के कारण व्यापारियों द्वारा किसानों का शोषण किया जा रहा है।
किसान का दर्द-
हम दिनभर खेत मेहनत करके धान उगाते है। जब बेचने आते हैं तो व्यापारी द्वारा हमें कम भाव सिया जाता है। हमें मजबूरी में कम भाव में हमारा मेहनत का धान बेचना पड़ता है।
-अलबसिंह, किसान।
मंडी चालू नहीं रहती है। हमें बाज़ार में माल बेचता पड़ता है। बीज के लिए कर्ज लेते हैं, जो चुकाना होता है। मंडी रोजाना चलनी चाहिए।
रमेश भूरिया, किसान
आवक होगी जब चालू करेंगे मंडी-
आवक होगी जब चालू करेगे मंडी। रोजाना इसलिए नहीं चलाते हैं, क्योंकि यहां मंडी आवक नहीं रहती। इसलिए मंडी रोजाना चालू नहीं होती है।
– केके दिनकर, मंडी सचिव झाबुआ।

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