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झाबुआ

घाटे के बाद भी टमाटर नहीं भेजा पाकिस्तान

सीमा पर तनाव के चलते एक्सपोर्ट बंद सवा लाख मीट्रिक टन उत्पादन होने से दाम गिरे तो किसानों को लागत निकालना मुश्किल

झाबुआDec 07, 2018 / 09:57 pm

अर्जुन रिछारिया

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घाटे के बाद भी टमाटर नहीं भेजा पाकिस्तान

झाबुआ. टमाटर का बंपर उत्पादन होने के बाद उचित दाम नहीं मिलने से किसानों के सामने मुश्किल खड़ी हो गई है। वर्तमान में थोक में टमाटर ढाई से तीन रुपए किलो में बिक रहा है। इससे उपज की लागत तक नहीं निकल पा रही। इतना घाटा उठाने के बावजूद पिछले दो सालों से यहां के किसान अपने टमाटर पाकिस्तान भेजने को तैयार नहीं है।
किसानों का कहना है कि या तो सरकार समर्थन मूल्य तय कर दें या फिर अन्य देशों में एक्सपोर्ट के लिए रास्ता खोले। इससे किसानों को मुनाफा हो। जिले में इस वर्ष कुल 2 हजार 74 हेक्टेयर क्षेत्र में टमाटर लगाया गया था। इसमें भी पेटलावद में बोवनी का रकबा सर्वार्धक 1 हजार 530 हेक्टेयर है। उत्पादन करीब 1 लाख 24 हजार 440 मीट्रिक टन हुआ और उस हिसाब से दाम नहीं मिल पा रहे। लिहाजा देश की राजधानी दिल्ली में धूम मचाने वाले जिले के टमाटर उत्पादकों की चालू सीजन के प्रथम दौर में ही हालत पतली नजर आ रही है। आधुनिक खेती को अपनाने वाले इन काश्तकारों को भारी नुकसान से गुजरना पड़ रहा है। दिल्ली, गुजरात सहित देश की विभिन्न मंडिर्यंे तक माल पहुंचाने में खर्च भारी पड़ रहा है। लागत भी नहीं निकल पाने से किसान निराश है। सबसे ज्यादा किस्म के टमाटर पेटलावद क्षेत्र में लगाए जाते हैं। इनमें नामधारी 25-35, शक्तिमान आरके-11, हिमसोना सिजेंटा, 8 48 सिजेंटा, 138 9 सिजेंटा, अमृतम, अभिनव, गांडिव, सेमिनीज, ऐश्वार्य गार्नियर सीड्स 555, सिद्धि ईस्ट-वेस्ट, ट्रापीकल सीड्स, टीसीएच 255, तेजस ईस्ट-वेस्ट। इनमें से अमृतम व अभिनव प्रजाति के टमाटर विदेश तक गए हैं।
पाकिस्तान में 200-250 रुपए प्रति किलो बिका है पेटलावद का टमाटर-
उन्नत किसान बालाराम पाटीदार के अनुसार पेटलावद क्षेत्र से टमाटर दिल्ली के साथ हरियाणा, पंजाब, पटियाला, अहमदाबाद, भोपाल, इंदौर की ओर भेजा जाता रहा है। पाकिस्तान में हमारे यहां का टमाटर 200 से 250 रुपए प्रतिकिलो तक भी बिका है। इससे बड़ी बात और क्या होगी। सीमा पर तनाव होने के बाद दो सालों से किसानों ने अपने टमाटर पाकिस्तान भेजना बंद कर दिए। बालाराम के अनुसार पिछले साल जब उत्पादन कम हुआ था तो टमाटर प्रति कैरेट 1200-1500 रुपए तक बिका था। सामान्य रूप से भी प्रति कैरेट 300 रुपए से कम में नहीं गया। इस बार अधिकतम 125 रुपए प्रति कैरेट किसान को मिल पा रहे हैं।
टमाटर दिल्ली भेजने में भी उठाना पड़ता है नुकसान
टमाटर को जब किसान दिल्ली की ओर भेजते है तो आड़तिया (कमीशन एजेंट) प्रति कैरेट 100 रुपए पर 8 से 10 प्रतिशत कमीशन काटते हैं। 15-16 रुपए प्रति कैरेट रखने की मजदूरी अलग से लगती है। इससे किसानों का मुनाफा मारा जाता है। ट्रॉले जब राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, पंजाब की बार्डर पार करते है तो उन्हें परिवहन विभाग के आला-अफसर को 2 से 3 हजार रुपए रिश्वत देना पड़ती है। मतलब पेटलावद से दिल्ली तक उपज भेजने में डीजल, ट्रक-ट्रॉले का किराया, आड़तिए के मनमाफिक कमीशन व अन्य खर्च को मिलाकर किसानों को नुकसान व लागत मूल्य के लगभग रकम मिलने के अलावा कुछ नहीं मिलता।
75 प्रतिशत टमाटर की खेती पेटलावद क्षेत्र में होती है
जिले में टमाटर की 75 प्रतिशत खेती पेटलावद व रायपुरिया क्षेत्र में होती है। यहां प्रति बीघा 600 से 8 00 कैरेट का उत्पादन होता है। यदि पानी का माध्यम पर्याप्त है तो उत्पादन 1000 से 1200 कैरेट तक तक भी पहुंचा जाता है। यहां का टमाटर 50 ग्राम से लेकर 150 ग्राम तक वजनी होती है। पूरे सीजन में प्रति बीघा टमाटर उत्पादन में 50 से 75 हजार रुपए तक का खर्चा आता है। इसमें दवाई, मजदूरी, बीज, तार, बांस, सुतली, खाद, कैरेट, परिवहन आदि शामिल हैं।
आवक अधिक होने से भाव टूट गए हैं। मंडी तक टमाटर लाने का खर्च नहीं निकल पा रहा। किसानों के मुताबिक खेत से टमाटर तोडऩे के लिए मजदूरी का भुगतान और बाजार तक ले जाने का खर्च ज्यादा होता है। कीमतें गिरने से हाथ कुछ नहीं आता। झाबुआ जिले से रतलाम, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान की मंडी तक टमाटर जाता है। मंडी में 75 से 8 0 रु. प्रति कैरेट दाम मिल रहे हैं। बहुत अच्छी क्वालिटी का टमाटर है तो भी 100 से 125 रु. प्रति कैरेट से ज्यादा भाव नहीं मिल रहे।

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