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झाबुआ

भगवान के दर्शन-पूजन-वंदन से परम संतोष की प्राप्ति होती है

-अष्ट प्रभावक नरेन्द्र सूरी ने भगवान शब्द का अर्थ बताया

झाबुआOct 20, 2019 / 05:54 pm

अर्जुन रिछारिया

भगवान के दर्शन-पूजन-वंदन से परम संतोष की प्राप्ति होती है

भगवान के दर्शन-पूजन-वंदन से परम संतोष की प्राप्ति होती है

झाबुआ. भक्ति में अनंत शक्ति छुपी है। यहीं भक्ति मुक्ति भी दे सकती है और जीवन में परम तृप्ति भी दे सकती है। भक्त को भगवान शब्द के चार अक्षरों पर ध्यान देना चाहिए। प्रथम ‘भÓ से संसार में भटकना नहीं चाहिए, ‘गÓ से गलती को स्वीकार कर लेना चाहिए। ‘वाÓ से किसी के साथ वाद-विवाद नहीं करना चाहिए और ‘नÓ ने न्रमता रखनी चाहिए। यह बातऋ षभदेव बावन जिनालय के राजेन्द्र सूरी पोषध शाला भवन में सुबह भक्तामर स्त्रोत की 11वीं गाथा का विवेचन करते हुए अष्ट प्रभावक आचार्य देवेश विजय नरेन्द्र सूरीश्वर ‘नवलÓ ने कही। आचार्य श्रीजी ने सफलता के मुख्य सूत्र समझाएं कि झगड़ा हो ऐसा बोलना नहीं, पेट बिगड़े ऐसा खाना नहीं, लोभ बढे ऐसा कमाना नहीं, कर्ज करना पड़े, ऐसा खर्चना नहीं। इन चार सूत्रों को अमल में लाने वाल मनुष्य जीवन में कभी़ दुखी नहीं हो सकता है।
उन्होंने कहा कि भगवान के प्रतिदिन दर्शन-पूजन-वंदन से परम् संतोष की प्राप्ति होती है। भगवान तो क्षीर सागर के तुल्य मधुर, सुंदर एवं अंदर से निर्मल होते है। क्षीर सागर का पान करने के बाद कौन खारा समुद्र का जल पीएगा?, कोई नहीं। अत: रोम-रोम में, कण-कण में भगवान को बसा कर भक्त उत्कृष्ट भक्ति करें, तो भव सागर भी पार सकता है। भगवान का सौंदर्य आलौकिक एवं सर्वोपरि है।

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