उन्होंने कहा कि भगवान के प्रतिदिन दर्शन-पूजन-वंदन से परम् संतोष की प्राप्ति होती है। भगवान तो क्षीर सागर के तुल्य मधुर, सुंदर एवं अंदर से निर्मल होते है। क्षीर सागर का पान करने के बाद कौन खारा समुद्र का जल पीएगा?, कोई नहीं। अत: रोम-रोम में, कण-कण में भगवान को बसा कर भक्त उत्कृष्ट भक्ति करें, तो भव सागर भी पार सकता है। भगवान का सौंदर्य आलौकिक एवं सर्वोपरि है।