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झालावाड़

खर्च की मार,कैसे खेलेगा इंडिया

बजट और संसाधनों की कमी: जिले से चित्तौड़ और बीकानेर गई हैं कई टीमें

झालावाड़Sep 17, 2018 / 03:58 pm

jagdish paraliya

patrika

खर्च की मार,कैसे खेलेगा इंडिया

झालावाड़. राज्य और केन्द्र सरकार स्कूली स्तर पर खेलों को बढ़ावा देकर बच्चों के शारीरिक विकास की बात तो कर रही है, लेकिन जब इनके लिए बजट और संसाधनों की बात आती है तो टालमटोल के हालात बन रहे हैं।
सरकार ने खुद को बचाने के लिए भले ही स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक खेलने जाने वाले खिलाडिय़ों के लिए राशि तय कर दी, लेकिन वह राशि छात्र कोष से देनी होती है। ऐसे में वास्तविकता यह है कि ७० फीसदी ग्रामीण स्कूलों में छात्र कोष ही नहीं है, ऐसी स्थिति में सरकार का ‘खेलो इंडियाÓ का नारा बेमानी लग रहा है।
सरकारी स्कूलों के बच्चों में भी जबर्दस्त प्रतिभा है मगर वे सरकार की ढुलमुल नीति के चलते सामने नहीं आ पा रही हैं। कई बार आर्थिक स्थिति के चलते बच्चे बाहर नहीं जा पाते हंै। आमतौर पर स्कूलों से खिलाड़ी तब ही निकलते हैं, जब उन पर कोई रुपए खर्च करने वाला होता है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में खिलाड़ी तो काफी हंै, लेकिन उन्हें आगे भेजने के लिए रुपए नहीं हैं।
इसलिए आई परेशानी

पहले फीस से छात्र कोष भर जाता था, लेकिन अब सरकार ने स्कूलों में शुल्क लेना बंद कर दिया है। ऐसे में छात्र कोष केवल भामाशाहों के भरोसे रह गया है। बड़े शहरी स्कूलों के लिए तो भामाशाह आगे आ जाते हैं, लेकिन छोटे स्कूलों में प्रतिभाओं को कोष के अभाव में काफी परेशानी होती है।
इतनी मिलती है राशि

राजकीय स्कूलों में १५ किलोमीटर से दूर कोई छात्र खेलने जाता है तो १०० रुपए ही दिए जाते हैं। ऐसे में एक दिन में एक समय का भोजन व नास्ता ही सौ रुपए से अधिक का हो जाता है। फिर १०० रुपए प्रतिदिन छात्रों के लिए नाकाफी है। जबकि क्रिडा परिषद ओपन खेलों में ३०० रुपए प्रतिदिन देता है।
घोषणा, बजट नहीं

सरकार ने शिक्षा विभाग की खेल प्रतियोगिताओं के लिए यात्रा, पोशाक, दैनिक भत्ता, बढ़ाने की घोषणा कर दी, लेकिन बजट के अभाव में यह राशि छात्र कोष से देनी होती है, ऐसे में कोष में पैसा नहीं होने से खिलाडिय़ों को खर्चें में परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में हर बार खिलाडिय़ों को भामाशाहों की ओर देखना पड़ता है। बजट के अभाव में स्कूल वाले बहुत कम खिलाडिय़ों को बाहर भेज पाते हैं। वहीं कम बजट होने से खिलाडिय़ों को फल,ज्यूस आदि नहीं मिल पाते हैं।
यहां गई जिले से टीमें

हाल में जिले से चितौड़ व बीकानेर १७ ओर १९ आयु वर्ग में बालीबॉल, फुटबाल, हैंडबाल, खो, कबड्डी आदि खेलों में १३ से१८ सितम्बर तक टीमें गई है।
खिलाडिय़ों ने बताया कि घर से पैसा खर्चा करना पड़ रहा है। कई छात्रों ने बताया कि गरीब स्थिति के कारण घर वाले भी बाहर नहीं भेज पाते हैं। ऐसे में सरकार को खिलाडिय़ों के लिए कम से कम २५० रुपए प्रतिदिन तो देना चाहिए। ताकि खाना व नास्ता आदि अच्छे से हो सके।

खो-खो में सुपर आठ के मुकाबले हुए

हेमड़ा. राबाउप्रावि में चल रही राज्यस्तरीय खो-खो प्रतियोगिता में खिलाड़ी उत्साह से भाग ले रहे हंै। रविवार को सुपर आठ में छात्रा वर्ग में सीकर, हनुमानगढ़, अजमेर, भीलवाड़ा, श्रीगंगानगर, जालौर, भीलवाड़ा की टीमें विजय रही, जबकी जालौर व टोक की टीमें बराबर रही। छात्र वर्ग में हनुमानगढ़, अलवर, श्रीगंगानगर, भीलवाड़ा, सांयकाल में पाली को हराकर भीलवाड़ा विजय, श्रीगंगानगर को हराकर नागौर तथा टोक को हराकर अलवर विजय रही। गुलाबसिंह सिसोदिया ने बताया के सोमवार को सेमीफाइनल मैच होंगे। भामाशाह बबलूसिंह की ओर से प्रतिदिन खिलाडिय़ों को भोजन दिया जा रहा है।

खेलों के लिए नहीं आता बजट

खेलों के लिए अलग से कोई बजट नहीं आता है, बॉयज फंड से १०० रुपए ही देने का प्रावधान है।

सुरेन्द्र सिंह गौड़, जिला शिक्षा अधिकारी, झालावाड़।

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