मामला खानपुर तहसील के चितावा गांव निवासी प्रभूलाल शर्मा (६५) का है। प्रभुलाल २२ दिसम्बर को डेगूं शॉक सिंड्रोम में चला गया था। इससे से कोटा के एक निजी अस्पताल मेें मौत हो गई थी।
किसान की पत्नी ने बताया कि वह उस समय बीमार थे। कोटा में एक अस्पताल में डेगूं का इलाज चल रहा था, उसी दौरान उनकी मौत हो गई। किसान ने ग्राम सेवा सहकारी समिति मालनवासा से एक लाख रुपए का ऋण ले रखा था। २१ दिसम्बर को ही किसान के परिजनों ने सहकारी समिति में जीवन बीमा का प्रीमियम ६३७ रुपए जमा करवाया था लेकिन संयोग से २२ दिसम्बर २०१६ को किसान प्रभूलाल की मौत हो गई। ग्राम सेवा सहकारी समिति से पता किया तो कहा गया कि आप का क्लेम पास हो जाएगा।
इससे स्वत:ऋण जमा हो जाएगा। इस पर किसान की वृद्ध पत्नी रामकन्या बाई (६३) ने सभी आवश्यक दस्तावेज तैयार कर सहकारी समिति के सचिव को दे दिए लेकिन आज तक कोई समाधान नहीं हो पाया है।
बुजुर्ग रामकन्या बाई ने बताया कि कई बार अधिकारियों के चक्कर काट चुकी हूं। अभी तक कोई समाधान नहीं हो रहा है। धैर्य दे गया जवाब किसान की विधवा पत्नी का कहना कि लम्बे समय से सहकारी समिति के चक्कर लगा रही हूं।
कोई समाधान नहीं हो रहा है। पति की बीमारी में भी काफी पैसा खर्च हो चुका है। एक लाख का ऋण ले रखा था। वो भी माफ होने वाला था लेकिन अभी तो कुछ भी नहीं हुआ है।
ऐसी शर्तों से कैसे संबल मिलेगा परिजनों को किसान की मौत होने पर ग्राम सेवा सहकारी समिति से जीवन बीमा के रूप में किसान को क्लेम मिलता है लेकिन बैंक अधिकारियों का तर्क है कि किसान की बीमा प्रीमियम जमा होने के दो माह बाद तक मौत नहीं होनी चाहिए।
ऐसे में मौत पर भले ही किसी का वश नहीं चले, लेकिन बैंक अधिकारियों का तर्क है कि किसान की मौत प्रीमियम जमा होने के दो माह तक नहीं होनी चाहिए लेकिन इस किसान की मौत एक दिन बाद ही हो गई।
बैंक के दो माह के नियम के अनुसार अब किसान को मौत आने की तारीख यमराज से पूछकर ही बीमा करवाना होगा। ताकी घटना, दुर्घटना होने पर कम से कम परिजनों को क्लेम मिल सके।