scriptगिरने को आतुर विरासत को सम्भालने की दरकार | The need to handle the tragic legacy of falling | Patrika News
झालावाड़

गिरने को आतुर विरासत को सम्भालने की दरकार

-गढ़ दरवाजे का टूटा किवाड़, हादसे की आश्ंाका-हजारों राहगीर निकलते है नीचे से

झालावाड़Mar 14, 2018 / 02:25 pm

jitendra jakiy

The need to handle the tragic legacy of falling

गिरने को आतुर विरासत को सम्भालने की दरकार

गिरने को आतुर विरासत को सम्भालने की दरकार
-गढ़ दरवाजे का टूटा किवाड़, हादसे की आश्ंाका
-हजारों राहगीर निकलते है नीचे से
झालावाड़. शहर के हद्य स्थल पर स्थित गढ़ भवन के मुख्य नक्कार खाना का विशाल किवाड़ टूट कर लटक रहा है। इसके नीचे से रोज हजारों राहगीर गुजर रहे है। समय रहते अगर इसे नही सुधारा गया तो कभी भी हादसे का सबब बन सकता है। शहर के बड़ा बाजार सीमेंट रोड़ से मंगलपुरा व अन्य क्षेत्र में जाने के लिए गढ़ भवन के मुख्य दरवाजे से रास्ता जाता है यहां से लोग गुजरते है लेकिन करीब एक माह पहले इस दरवाजे का विशाल किवाड़ टूट कर लटक गया है। करीब २५ फीट लम्बाई का यह विशाल किवाड़ मात्र एक छोटी से लकड़ी के लेंटर पर अटक रहा है। शहर में पर्यटन के आकर्षण के मुख्य केंद्र गढ़ भवन का तो इन दिनो सौंदर्यकरण व जीर्णोद्वार किया जा रहा है लेकिन इसके तीनो भव्य दरवाजों की दुर्दशा हो रही है। इसके मुख्य नक्कार खाना द्वार के अलावा तबेला रोड़ की ओर स्थित विलायती द्वार व मंगलपुरा बाजार की ओर स्थित द्वार की भी दुर्दशा हो रही है। विलायती दरवाजे पर कचरा व गंदगी का आलम पसरा रहता है वही मंगलपुरा वाले दरवाजे में आवारा पशुओं ने कब्जा जमा रखा है। इन दरवाजें के निकट से गुजरने पर भयंकर बदबू का सामना करना पड़ता है। शहर में बजे सीसी रोड़ केक दौरान इन दरवाजे के किवाड़ों को नीचे से काट दिया गया था जब से ही इनके किवाड़ कमजोर हो गए और इन्हे सुधारने का कोई प्रयास नही किया गया।
-आपपास के दुकानदार दहशत में
दरवाजे के निकट फलों की दुकान लगाने वाले जावेद चौधरी ने बताया कि करीब एक माह पहले से यह किवाड़ टूटा नजर आ रहा है, जब भी तेज हवा चलती है तो घबराहट हो जाती है क्योकि यह किवाड़ अधर में लटका हुआ है। कभी भी अगर हादसा हुआ तो बाहर लगी दुकानें भी प्रभावित होगी। आसपास के दुकानदार इससे दहशत में रहते है।
असामाजिक तत्वों का काम है
शहरवासी पवन जैन ने बताया कि इस किवाड़ पर पहले गणेशजी की प्रतिमा भी लगी थी उसे भी चुरा ली गई व उसी स्थान से खिड़की की जगह से इस भव्य किवाड़ को तोड़ा जा रहा है, इसमें लोहे की वजनी सांकले व कीले लगे है उन्हे चोरी करने का प्रयास किया जा रहा है। दरवाजे को धीरे धीरे असमाजिक तत्व नष्ठ कर चोरी कर ले जाना चाहते है।
हमारी विरासत को सहजने की आवश्यकता
झालावाड़ पर्यटन विकास समिति के अध्यक्ष दिनेश सक्सेना ने कहा कि झालावाड़ शहर में पर्यटन के मुख्य आकर्षण गढ़ भवन के मुख्य नक्कार खाना द्वार की दुर्दशा से हमारी विरासत की छवि धूमिल हो रही है। विभाग को गढ़ भवन के तीनो दरवाजों का जीर्णोद्वार कर इनके सौंदर्यकरण का प्रयास करना चाहिए।
-सुधारने का प्रयास किया जाएगा
इस सम्बंध में पुरात्तव विभाग संग्रहालय के क्यूरेटर मोहम्मद आरीफ ने कहा कि इसकी सूचना आपसे मिली है, इन दिनो गढ़ भवन में सौंदर्यकरण व जीर्णोद्वार का भी कार्य चल रहा है इस दौरान इस दरवाजे के किवाड़ को भी ठीक करवाने का प्रयास किया जाएगा।
गौरवशाली इतिहास
झालावाड़ के इतिहासकार ललित शर्मा ने बताया कि गढ़ भवन का मुख्य सदर द्वार पुर्वाभिमुखी है। इसे नक्कारखाना कहते है। इस द्वार पर झालावाड़ राज्य के तत्कालीन महाराज राणा मदन सिंह ने सन् १८४० में मजबूत लकडिय़ों से विशाल किवाड़ लगवाए थे। इन किवाड़े पर ऊपर से नीचे की ओर से डेढ़ से एक फीट के नुकीले कीले लगवाए थे ताकि दुश्मन से किवाड़ की रक्षा की जा सके। पहले हाथियों के माध्मय से किलो व गढ़ों के दरवाजे तोड़े जाते थे इस लिए दरवाजे पर नुकीले कीले लगाए जाते थे जिससे हाथी घायल हो जाते थे और किवाड़ नही तोड़ पाते थे। इस द्वार के दोनो ओर दुमंजिले प्रहरी कक्ष है। इस विशाल द्वार का शिल्प , स्थापत्य राजपूती कला का नमूना है। इसकी शीर्ष छत के अद्र्वगोलाकार भाग पर मिट्टी की ऊभरी राधाकृष्ण तथा एनकर दो सखियों की मूर्तियां देखने योग्य है जिन पर राजस्थानी शैली के भभकदार रंग है। विशाल द्वार के ललाट मध्य में देव गणेश प्रतिष्ठित हे तथा भित्ती पर मिट्टी से उभरे दो मयूर काफी सुंदरता व सजीवता लिए है। वर्तमान में इनके संरक्षण की आवश्यता है।
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