‘जप, तप, धर्म और अनुष्ठान इस भाव से करें तो संसार रूपी भव सागर से तर जाओगे’
‘जप, तप, धर्म और अनुष्ठान इस भाव से करें तो संसार रूपी भव सागर से तर जाओगे’
‘जप, तप, धर्म और अनुष्ठान इस भाव से करें तो संसार रूपी भव सागर से तर जाओगे’
झांसी। जैन महिला संत आर्यिका पूर्णमति माता ने कहा कि यदि कर्ता कर्म भाव को समझ ले तो सब झगड़े समाप्त हो जायें और संसारी जगत के भाव को समझ ले तो सब झगड़े समाप्त हो जाये और संसारी जगत की वस्तुओं के आकर्षण में कृतित्व भाव रखा तो भटक जायेगा और यही भटकाव योनि दर योनि चलता रहेगा। इसलिए स्वयं के शरीर और बुद्धि का सही प्रयोग करो। पुरुषार्थ करो, सतकर्मों की आदत डालो, इसका उपभोग नहीं उपयोग करो। जप, धर्म, तप, अनुष्ठान आदि विश्व कल्याण की भावना से करो तो जल्द ही इस संसार रूपी भव सागर से तर जाओगे। वह यहां करगुवां जैन तीर्थ में आयोजित धर्मसभा में बोल रही थीं।
अनंत गुणों का पुंज है आत्मा
जैन माता ने कहा कि आत्मा अनंत गुणों का पुंज है। यह शरीर जहरीली तुम्बी की तरह है, लेकिन मशीन की तरह कार्य करता है जो भी जीव के विचार में आता है शरीर उस कर्म को सम्पन्न कर देता है और मनुष्य सोचता कि यह सब काम उसकी ही बदौलत पूर्ण हुआ। नहीं, यह तो धोखा है। हमने अपने शरीर की बुद्धि को आत्मा के भाव में लगा दिया है। उन्होंने कहा कि मनुष्य अपनी बुद्धि को तमाम प्रकार के कार्यों में लगाता है उसके स्थान पर बुद्धि को स्वकल्याण के कार्य में लगाओ।
मन को भगवान की भक्ति में लगाएं
जैन माता ने कहा कि अपने आपको भव बंधनों से मुक्त करने के लिये सच्चे हृदय और पूरी सावधानी के साथ लगाया जाये। शरीर को जीवन यात्रा के प्रयोजनों और मन को भगवान की भक्ति में लगाये रहें। सत्कर्मों के द्वारा अपना आने वाला समय उज्ज्वल करना। प्रभु के इस बगीचे रूपी संसार को अधिक सुरम्य बनाने के लिये निरंतर लोक सेवा एवं परमार्थ के कार्यों में संलग्न रहना, यही जीवन का सर्वोत्तम सदुपयोग है।
ये लोग रहे उपस्थित
इस अवसर पर चक्रेश जैन, पुष्पेन्द्र जैन, विजय जैन, कमलेश, संजय सिंघई ने दीप प्रज्ज्वलित कर धर्मसभा का शुभारंभ कराया। वहीं, दिल्ली से पधारीं डा. विमला पाटनी ने श्रीफल अर्पित कर आशीर्वाद लिया।
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