पर्यूषण पर्वः जिसमें हैं ये तीन विशेषताएं, वही है ज्ञानी
पर्यूषण पर्वः जिसमें हैं ये तीन विशेषताएं, वही है ज्ञानी
पर्यूषण पर्वः जिसमें हैं ये तीन विशेषताएं, वही है ज्ञानी
झांसी। जैन आर्यिका पूर्णमति माता ने कहा कि पांच इन्द्रियों के विषयों से रहित होने का नाम ही ब्रह्मचर्य धर्म है। व्यवहार रूप से तो यह है कि स्त्री-पुरुष परस्पर राग जन्य प्रणय संबंधों से विरक्त रहें, परन्तु वास्तव में तो पदार्थ मात्र के प्रति विरक्त का भाव आना चाहिये। पदार्थ के साथ संबंध अर्थात् पर के साथ संबंध होना ही संसार है। जो अभी पर से संतुष्ट हैं, इसका अर्थ है कि वह अपने आप में संतुष्ट नहीं हैं तभी तो पर पदार्थों की ओर आकृष्ट हैं। ज्ञानी तो वह है जो अपने आप में है, स्वस्थ है। अपनी आत्मा में लीन है। उसे स्वर्ग के सुखों की चाह नहीं है और न ही संसार की किसी वस्तु के प्रति लगाव है। वह तो ब्रह्म में अर्थात् आत्मा में ही संतुष्ट है। वह यहां करगुवां जैन मंदिर में पर्यूषण पर्व के दसवें दिन धर्मसभा को संबोधित कर रही थीं।
आत्मा में रमना ही सच्चा ब्रह्मचर्य
जैन आर्यिका ने कहा कि उपयोग को विकारों से बचाकर वीतरागता में लगाना चाहिये। आत्मा में रमना ही सच्चा ब्रह्मचर्य है जिसके उपरान्त किसी प्रकार के विकारी भावों का प्रादुर्भाव संभव नहीं है। इस ब्रह्मचर्य की शक्ति के सामने कामदेव भी नतमस्तक हो जाता है। उन्होंने कहा कि जगत के स्वभाव को जानना संवेग का कारण है और शरीर के स्वभाव को पहचानना वैराग्य का कारण है। जो निरंतर संवेग और वैराग्य में तत्पर रहने वाली आत्मायें हैं, उनको कर्मों के उदय से डरने की आवश्यकता नहीं है। संसार का गर्त कितना ही गहरा क्यों न हो, संवेगवान और वैराग्यवान जीव कभी उसमें गिर नहीं सकता। जब कभी भी संसार से मुक्ति मिलेगी तो उसी संवेग और वैराग्य से ही मिलेगी ।
आत्मा की पवित्रता ही ब्रह्मचर्य
गुरू मां ने कहा कि आत्मा की पवित्रता ही ब्रह्मचर्य है। उन्होंने कहा कि आज दशलक्षण धर्म का अंतिम दिन मत समझिये, दशलक्षण धर्म तो तभी सम्पन्न हुये माने जायेंगे जब हम जितेन्द्रय होकर शैलेषी दशा को प्राप्त कर लेंगे। आज पुरुष की दृष्टि भोग्य पदार्थों की ओर जा रही है, यही विकृति है, विकार है। पदार्थों की ओर होने वाली दौड़ ही व्यक्ति को कंगाल बनाती है।
ये लोग रहे उपस्थित
इस अवसर पर अरूण जैन, कुलदीप जैन, राजीव सिर्स ने आचार्य विद्यासागर के चित्र का अनावरण एवं दीप प्रज्ज्वलित कर धर्मसभा का शुभारम्भ कराया। इस मौके पर श्रीमती सरला भोपाल, श्रीमती अमरवाला इन्दौर, डा श्रेयांस बड़ौत, शांतकुमार, शनि जैन चैनू ने आर्यिका पूर्णमति को शास्त्र भेंट किया। इस मौके पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं गौरव अध्यक्ष प्रदीप जैन आदित्य, प्रवीण कुमार जैन, अशोक रतनसेल्स, सुभाष सत्यराज, दिनेश जैन, सी ए सुमित जैन आदि मौजूद रहे। संचालन ब्रह्मचारी आशीष भैया ने किया। बाद में आभार सौरभ सर्वज्ञ ने व्यक्त किया।
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