नदियों को जोड़ने की परिकल्पना तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने की थी। उनकी सत्ता जाते ही यह प्रोजेक्ट फाइलों में कैद हो गया। हालांकि, यूपीए सरकार ने कुछ प्रयास किए लेकिन बेतवा-केन गठजोड़ का मुद्दा नहीं सुलझा। दरअसल, दोनों नदियों के गठजोड़ से जहां उप्र के हिस्से वाले बुंदेलखंड को कम लाभ मिल रहा था वहीं मप्र को अधिक फायदा हो रहा था। वहीं मप्र सरकार अपने हिस्से का बजट देने को तैयार नहीं थी।
केंद्र में एनडीए सरकार बनते ही केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने इस परियोजना को गति देने का प्रयास किया। उनके धुर प्रतिद्वंद्वी मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उमा भारती को श्रेय लेने से रोकने के लिए अड़ंगा डालना शुरू कर दिया। इस कारण यह प्रोजेक्ट नाक का सवाल बन गया। उमा भारती का मंत्रालय बदलते ही बर्फ छंटने के आसार नजर आने लगे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस संबंध में सकारात्मक संकेत देकर जता दिया है कि मप्र सरकार ने इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में रुचि दिखा दी है और जल्द ही इस पर काम शुरू कर दिया जाएगा।
क्या है प्रोजेक्ट अपने प्रारंभिक दौर में नौ हजार करोड़ रुपये की केन-बेतवा लिंक परियोजना अब 19 हजार करोड़ की लागत पर पहुंच गई है। इस परियोजना से मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के तीन-तीन जिलों की 6,35,661 हेक्टेयर भूमि सिंचित होनी है। परियोजना के मुताबिक बांदा व छतरपुर जिले की सीमा पर बोधन गांव के निकट गंगोई बांध से केन नदी को तीस मीटर चौड़ी कंक्रीट नहर बनाकर आगे ले जाना है।
धसान नदी पर एक टनल (सुरंग) बनाकर आगे बढ़ाया जाएगा। छतरपुर के हरपालपुर से होकर यूपी के मऊरानीपुर बार्डर से एमपी के जतारा तहसील के गांवों से होकर इस नहर को बरुआसागर डैम के ऊपर से ओरछा के नीचे स्थित नोटघाट पुल में मिला दिया जाएगा। नहर एमपी-टू-एमपी होगी या फिर उत्तर प्रदेश की जमीन से भी निकाली जाएगी, इस सवाल पर जल संसाधान विभाग के उच्चस्थ सूत्र फिलहाल कुछ भी नहीं बता रहे हैं, लेकिन यह बात वह साफ कर रहे हैं कि नहर का पूरा डूब व प्रभावित क्षेत्र मध्यप्रदेश में ही है और प्रोजेक्ट रिपोर्ट में यूपी में डूब या प्रभावित क्षेत्र शून्य दर्शाया गया है।
उत्तरप्रदेश की धरती पर जब प्रभावित क्षेत्र है ही नहीं तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह नहर यूपी के बार्डर को छूकर एमपी से ही निकलेगी। इससे साफ है कि पानी का अधिक फायदा मध्य प्रदेश को ही होने वाला है।
इस तरह बंटना है पानी मध्यप्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़ व पन्ना जिले में अब तक सिंचित क्षेत्र का कुल रकबा 2 लाख 87 हजार 842 हेक्टेयर था, जो इस नहर के बन जाने के बाद 3 लाख 69 हजार 881 हेक्टेयर हो जाएगा। इसी तरह उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा व झांसी जिले में अब तक सिंचित रकबा 2 लाख 27 हजार 373 हेक्टेयर है यह बढ़कर दो लाख 65 हजार 780 हो जाएगा। आंकड़ों को देखकर ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसका लाभ यूपी को एमपी की अपेक्षा काफी कम मिलेगा।
परियोजना का नफा-नुकसान केन-बेतवा लिंक परियोजना का भले ही यूपी व एमपी की जगह बुंदेलखंड को दृष्टिगत रखते हुए प्रोजेक्ट तैयार किया गया हो, पर हकीकत के धरातल पर जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, उसमें उत्तरप्रदेश का सिंचित रकबा मध्यप्रदेश के मुकाबले आधे से भी कम बढ़ रहा है।
एमपी में जहां एक लाख हेक्टेयर से अधिक सिंचित रकबा बढ़ेगा तो वहीं यूपी को तीस से चालीस हजार हेक्टेयर रकबे का ही लाभ होने की उम्मीद है। हालांकि, जल संसाधान मंत्रालय इसके लिए बुंदेलखंड की भौगोलिक स्थिति को जिम्मेदार मानता है। इतना ही नहीं केन नदी से होने वाली बांदा शहर की जलापूर्ति भी इस परियोजना के शुरू होने के बाद गड़बड़ाने की आशंका है।