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झांसी

लॉकडाउन में बेरोजगार हुआ युवक, 550 किमी रिक्शा चलाकर पहुंचा अपने गांव झांसी

लॉकडाउन में बेरोजगारी का आलम झेल रहे कुछ लोग परेशान होकर अपने गांव वापस लौट रहे हैं

झांसीApr 01, 2020 / 03:21 pm

Karishma Lalwani

लॉकडाउन में बेरोजगार हुआ युवक, 550 किमी रिक्शा चलाकर पहुंचा अपने गांव झांसी

लॉकडाउन में बेरोजगार हुआ युवक, 550 किमी रिक्शा चलाकर पहुंचा अपने गांव झांसी

झांसी. लॉकडाउन को आठ दिन बीत चुके हैं लेकिन अब भी बड़े शहरों में काम करने वाले लोगों का अपने गांव की ओर पलायन जारी है। लॉकडाउन में बेरोजगारी का आलम झेल रहे कुछ लोग परेशान होकर अपने गांव वापस लौट रहे हैं। आने जाने के लिए कोई साधन न होने के चलते लोग अपने-अपने साधन से ही घर को लौट रहे हैं। मध्यप्रदेश के हरपालपुर का रहने वाला एक मजदूर चार दिन पहले नोएडा से पत्नी को रिक्शे पर बैठाकर झांसी तक के 550 किमी के सफर पर निकला गया। लॉकडाउन में कोई काम न होने के कारण इस दंपत्ति ने अपने गांव जाना ही मुनासिब समझा।
बुंदेलखंड के हरपालपुर (छतरपुर) के रहने वाले बृजकिशोर रिक्शा चालक हैं और उनकी पत्नी घरों झाड़ू-पोंछे का काम करती हैं। बृजकिशोर ने बताया कि गांव में रहते हुए साहूकारों का इतना कर्ज बढ़ गया था कि वे अपनी पत्नी के साथ दो साल पहले नोएडा चले गए। वहां उन्होंने रिक्शा चलाने का काम शुरू किया और उनकी पत्नी घरों में झाड़ू-पोंछा करने लगीं। जैसे-तैसे जिंदगी का गुजर-बसर हो रहा था। लेकिन जब से लॉकडाउन हुआ है तब से उनका काम ठप पड़ा है। रिक्शा वे चला नहीं सकते और जहां उनकी पत्नी काम करती है, वहां उसे ऐसी नजरों से देखा जाता है, जैसे वह कोरोना से पीड़ित हो। इसके बाद उसे काम पर आने के लिए मना कर दिया। यहां तक कि मकान मालिक ने भी घर से जाने के लिए बोल दिया। उन्होंने कहा कि दिन में पुलिस ने नहीं निकलने दिया तो शाम होते ही वे दोनों रिक्शे से निकल आए।
हर आदमी तक सरकारी मदद पहुंचे, यह जरूरी नहीं

बृज किशोर की पत्नी माया ने कहा नोएडा से उनके घर की दूरी 550 किमी है। उनके पति पिछले चार दिन से रिक्शा चला रहे हैं। उन्होंने बताया कि दिन में तो सामान्य स्थिति रहती है, मगर रात होते ही डर लगने लगता है। हालांकि, वे सही सलामत अपने घर को पहुंच गए। अब गांव में पहुंचते ही कर्ज के लिए साहूकार परेशान करेंगे। सरकार द्वारा मदद किए जाने की बात पर माया कहती हैं कि कहने और हकीकत में बहुत बड़ा फर्क होता है। हर आदमी तक सरकारी मदद पहुंचना मुमकिन नहीं है।

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