झांसी. तिरंगा यात्रा के समापन पर झांसी के बड़ागांव में एक जनसभा आयोजित हुई जिसे केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने संबोधित किया। केंद्रीय मंत्री ने अपने संबोधन में 1994 में कर्नाटक के हुबली में तिरंगा फहराने के बाद हुए विवाद और दस साल बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने की कहानी बताई। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि 15 अगस्त 1994 को उन्होंने समर्थकों के साथ हुबली के ईदगाह मैदान पर तिरंगा फहराया था जिसके बाद गोलियां चली, लाठियां चली और कर्फ्यू लगाया गया था।
तिरंगे के लिए सिर कटाने का दावा
बड़ागांव कस्बे में तिरंगा यात्रा के समापन पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा कि तिरंगे के सम्मान को लेकर वे अपना सिर भी कटा सकती हैं। उमा ने कहा कि कर्नाटक के हुबली में ईदगाह मैदान पर 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने तिरंगा फहराने पर रोक लगा दी थी। उमा ने कहा कि उन्हें जब भाजपा युवा मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया तो आंदोलन चलाया और लोगों को अपने साथ जोड़ा।
तिरंगा फहराने के बाद चली गोलियां
उमा के मुताबिक, 15 अगस्त 1994 को अपने ऐलान के मुताबिक वे समर्थकों के साथ ईदगाह मैदान पर एकत्र हुई और तिरंगा फहरा दिया। तिरंगा फहराने के बाद गोलियां चली, लाठियां चली और कर्फ्यू तक लगा दिया गया। इसके बाद मेरे ऊपर केस लग गया। उमा ने कहा कि उन्होंने आने वाले 26 जनवरी को फिर से तिरंगा फहराने का ऐलान किया लेकिन इससे पहले ही कांग्रेस की सरकार ने वहां तिरंगा फहरा दिया।
तिरंगे के लिए छोड़ दिया मुख्यमंत्री पद
उमा ने जनसभा में कहा कि जब केंद्र में भाजपा की सरकार चली गयी तब 2004 में उनके खिलाफ वारंट जारी किया गया। तब वे मध्य प्रदेश की मुख्य मंत्री थीं। उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी ने इस मामले में जमानत लेने की सलाह दी थी लेकिन उमा भारती ने जमानत लेने से मना करते हुए गिरफ़्तारी देने का निर्णय लिया। उमा के मुबातिक, उन्होंने तिरंगे के सम्मान के लिए मुख्य मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया और गिरफ़्तारी देने हुबली पहुंचीं। इसके बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया। उनसे जमानत लेने को कहा गया लेकिन उन्होंने नहीं लिया। उमा के मुताबिक पंद्रह दिन बाद सरकार ने केस वापस ले लिया।
अटल-आडवाणी ने नहीं किया षड़यंत्र
उमा भारती ने कहा कि इस घटना क्रम के बाद जो हुआ उसे वे नहीं बता सकती। दरअसल वापस आने के बाद उन्हें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद वापस नहीं दिया गया। उमा ने कहा कि उन्हें पार्टी के निकाला गया। उमा ने यह भी कहा कि अटल और आडवाणी ने उनके खिलाफ किसी तरह का षड़यंत्र नहीं किया। यह भी कहा कि पद जाने का उन्हें कतई अफ़सोस नहीं हुआ क्योंकि तिरंगे के सम्मान के लिए वे अपना सिर भी कटा सकती हैं। आगे भी जरूरत पड़ने पर कुर्सी छोड़ने को तैयार रहूंगी।