ऐसा है स्वास्थ्य विभाग का हाल, योजनाएं हैं तो जानकारी नहीं और संसाधन हैं तो कर्मचारी नहीं
ऐसा है स्वास्थ्य विभाग का हाल, योजनाएं हैं तो जानकारी नहीं और संसाधन हैं तो कर्मचारी नहीं
ऐसा है स्वास्थ्य विभाग का हाल, योजनाएं हैं तो जानकारी नहीं और संसाधन हैं तो कर्मचारी नहीं
झांसी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत यहां एक होटल में संयुक्त निदेशक डा. रेखा रानी की अध्यक्षता में ‘स्वास्थ्य संचार के सुदृढ़ीकरण के लिए कार्यशाला’ का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का आयोजन सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीएफ़एआर) के द्वारा किया गया। कार्यशाला में मौजूद सभी मीडिया बंधुओं के साथ ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के द्वारा क्रियान्वित किए जा रहे कार्यक्रमों’ के विषय में विस्तार से चर्चा की गयी। इस मौके पर स्वास्थ्य विभाग की अजीब सी स्थिति उभर कर सामने आई। इसमें पाया गया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की जिले में सौ से ज्यादा योजनाएं चल रही हैं, लेकिन उनकी पर्याप्त जानकारी लोगों तक नहीं है। इसी तरह से कई जगह पर बिल्डिंग और अन्य संसाधन तो तैयार हैं, लेकिन वहां डाक्टर और कर्मचारी नहीं हैं। ऐसे में योजनाओँ के ठीक तरह से बनाए जाने और उनके समुचित प्रचार-प्रसार पर जोर दिया गया।
तीन सत्रों का किया गया आयोजन
इस कार्यशाला का आयोजन तीन सत्रों में किया गया। इसमें पहला सत्र हेल्थकेयर सुदृढ़ीकरण पर एक प्रस्तुतिकरण, डा एनके जैन, अपर मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा प्रस्तुत किया गया। दूसरा सत्र कार्यकर्ता, स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा अनुभव साझा करने का रहा। इसके बाद तीसरा सत्र मीडिया कर्मियों द्वारा अनुभव साझा करने का रहा।
इन योजनाओं की दी जानकारी
इस मौके पर डा एन के जैन ने बताया कि इस कार्यशाला का उद्देश्य जनमानस की बेहतर स्वास्थ्य स्थिति और जीवन की गुणवत्ता सुनिश्चित करने एवं स्पष्टता के साथ स्थिर विकास उपायों को सुनिश्चित करना है। उन्होंने बताया कि मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) एवं शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) को कम करने में संस्थागत प्रसव और नियमित टीकाकरण व अन्य गतिविधियों के माध्यम से जिला स्तर पर तय किए गए लक्ष्य को प्राप्त करना है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि झांसी जिले की साक्षारता दर 75.07 प्रतिशत है। इसमें 85.38 प्रतिशत पुरुष और 63.49 प्रतिशत महिला साक्षर हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में जनपद में आईएमआर 41 और एमएमआर 233 है जो प्रदेश स्तर से काफी बेहतर स्थिति में है। उन्होंने बताया कि आईएमआर और एमएमआर को कम करने के लिए संस्थागत प्रसव में प्रत्येक वर्ष बढ़ोत्तरी हो रही है और पिछले वर्ष 84 फीसदी बच्चों का पूर्ण प्रतिरक्षण किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि एमएमआर और आईएमआर को कम करने के लिए परिवार नियोजन की बहुत अधिक भूमिका है। इसके अलावा उन्होंने जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, कंगारू मदर केयर, एसएनसीयू, एनआरसी और संपूर्णा क्लीनिक के बारे में चर्चा की।
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