किसान काले गेहूं की फसल की देखभाल भी पूर्णतया ऑर्गेनिक तरीके से कर रहे हैं। किसान लीलाधर ने बताया कि वह अपने खेतों में ऑर्गेनिक खेती पिछले चार पांच वर्षों से करते आ रहे हैं। इस वजह से उनका सम्पर्क नेशनल एग्री फूड बायो टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट मोहाली (पंजाब) से बना हुआ है।
इंस्टीट्यूट की डॉ. मोनिका गर्ग ने दस वर्ष तक काले गेहूं के औषधीय तत्वों पर गहन रिसर्च कर उसके सुलभ परिणाम बताए तो उससे प्रेरित होकर इस वर्ष काले गेहूं के बीज इंस्टीट्यूट से मंगवाए। किसान लीलाधर ने बताया कि रासायनिक खेती की बजाय ऑर्गेनिक खेती किसान के लिए काफी फायदेमंद होती है।
ऑर्गनिक फसल स्वास्थ्य के लिए भी काफी गुणकारी होती है। लीलाधर ने बताया कि ऑर्गेनिक खेती में किसान की लागत काफी कम होती है जिससे उन्हें फसल की पैदावार में मुनाफा भी अधिक होता है। काल गेहूं रोग प्रतिरोगी व कीट प्रतिरोधी प्रजाति का माना गया है।
कम लागत, मुनाफ ज्यादा
साधारण तय गेहूं-बाजरे से 18 से 22 रुपए किलो तक के भाव मिलते हैं, जबकि काले गेहूं में औषधीय तत्वों के कारण यह बाजारों में 150 से 200 रुपए किलो तक में बेचे जाते हैं। काले गेहूं की फसल के पैदावार के बाद किसान की आर्थिक स्थिति भी काफी मजबूत होगी। वहीं कई जगह इसकी मांग सामान्य गेहूं से ज्यादा है।
यह है विशेषता
सीड टेक्नोलॉजी के अनुसार काले गेहूं दिखने में थोड़े काले व बैंगनी होते हैं। इनका स्वाद साधारण गेहूं से काफी अलग व गुणकारी है। एंथ्रोसाइनीन पिंगमेंट की मात्रा ज्यादा होने के कारण ये काले व बैंगनी होते हैं। साधारण गेहूं में इसकी मात्रा 5 से 15 प्रतिशत पीपीएम तक होती है, जबकि काले गेहूं में इनकी मात्रा 40 से 140 प्रतिशत तक होती है। पौधे हरे रंग के होते हैं, बाद में पकने पर बाली काली हो जाती है। जिले में अभी इसका रकबा कम है, लेकिन मुनाफे को देखते हुए इसका रकबा बढऩे की संभावना है।
काले गेहूं में प्रोटीन ज्यादा होता है।शुगरवालों को फायदा होता है। सूरजगढ़ सहित कई जगह इसकी खेती हो रही है।खेती अभी तक सफल है।
शीशराम जाखड़, उप परियोजना निदेशक, आत्मा, कृषि विभाग