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झुंझुनू

बुआई के वक्त खेत में पकने को तैयार कपास

पिछली बार बोए गए कपास को बिना उखाड़े लगातार दूसरी बार उत्पादन के लिए पांच बीघा में प्रयोग किया गया। सुनील भूरिया बताते हैं कि उन्होंने 11 अप्रेल 2020 को पांच बीघा जमीन में कपास पैदा किया। इसके बाद कपास के पौधों को उखाडऩे की बजाए जमीन से कुछ ऊंचाई तक ऊपर से काट कर फंगस नहीं लगे, इसके लिए स्प्रे कर दिया। इससे कपास पर सर्दी का असर भी नहीं पड़ा और मार्च में पौधों में फुटान शुरू हो गया। अब कपास में पिछले साल बुआई की तुलना में ज्यादा फुटान हुई और फूल निकल आए हैं। सामान्य तौर पर कपास की बुवाई जून माह

झुंझुनूJun 04, 2021 / 10:27 am

Jitendra

बुआई के वक्त खेत में पकने को तैयार कपास

बुआई के वक्त खेत में पकने को तैयार कपास

झुंझुनूं. शेखावाटी के लोगों ने हर क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल की है। वह उपलब्धि चाहे सेना में शौर्य दिखाने की हो, शिक्षा में नंबर एक रहने या खेती में नवाचार की हो। शेखावाटी की विपरीत परिस्थितियों में यहां के किसानों ने खेती में प्रयोग किए हैं। ऐसा ही एक प्रयोग किया है जिला मुख्यालय के नजदीक पुरोहितों की ढाणी ग्राम पंचायत के प्रगतिशील युवा किसान सुनील भूरिया ने। एक तरफ जहां खेतों में इस वक्त किसानों के कपास की फसल की बुआई की गई है। वहीं, दूसरी तरफ सुनील के खेत में कपास की फसल लहलहा रही है और कपास के फूल निकल आए हैं तथा जल्द ही पकने की स्थिति में आने वाली है।

पांच बीघा जमीन पर कर रहे प्रयोग

पिछली बार बोए गए कपास को बिना उखाड़े लगातार दूसरी बार उत्पादन के लिए पांच बीघा में प्रयोग किया गया। सुनील भूरिया बताते हैं कि उन्होंने 11 अप्रेल 2020 को पांच बीघा जमीन में कपास पैदा किया। इसके बाद कपास के पौधों को उखाडऩे की बजाए जमीन से कुछ ऊंचाई तक ऊपर से काट कर फंगस नहीं लगे, इसके लिए स्प्रे कर दिया। इससे कपास पर सर्दी का असर भी नहीं पड़ा और मार्च में पौधों में फुटान शुरू हो गया। अब कपास में पिछले साल बुआई की तुलना में ज्यादा फुटान हुई और फूल निकल आए हैं। सामान्य तौर पर कपास की बुवाई जून माह में होती है। फूल अक्टूबर/नवम्बर में आते हैं।

पांच बीघा में 18 क्विंटल उत्पादन
पिछली बार पांच बीघा में 18 क्विंटल उत्पादन किया गया। इस बार पिछली बार की बजाए ज्यादा फुटान हुई है। जिसके चलते उम्मीद जताई जा रही है कि बेहतर उत्पादन होगा। हालांकि कपास को लेकर पहला प्रयोग हुआ है। इसलिए इस पर रिसर्च की जरूरत है कि यह किसानों के हित में रहता है या नहीं।
मिल चुके हैं सम्मान

युवाा किसान सुनील भूरिया को पहले भी खेती में बीजोत्पादन, मल्चिंग विधि समेत कई प्रकार की खेती करने पर पुरस्कार मिल चुके हैं। सुनील को 2013 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से गुजरात के गांधीनगर में कृषक सम्मान और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पुरस्कार मिल चुका है।

इनका कहना है….
किसान का यह प्रयोग अच्छा है। परंतु इस प्रयोग को एटीसी या केवीके आबूसर में रिसर्च के बाद ही अन्य किसानों को इस कार्य के लिए प्रेरित किया जा सकता है। कम से कम दो साल रिसर्च के बाद पता चलेगा कि क्या उत्पादन होता है।
-डा. राजेंद्र लाम्बा, उप निदेशक (कृषि विस्तार), झुंझुनूं

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