दर्जनों परिवारों को मिल रहा रोजगार
खेतड़ी के अचार के बारे में यह भी कहा जाता है कि जिसने एक बार यहां का अचार खा लिया, उसे और कहीं का अचार पंसद नहीं आता। यही कारण है कि कस्बे में दर्जनों परिवार आज नींबू-मिर्च के अचार का ही व्यवसाय कर रहे हैं।
मिट्टी के मटकों में वर्षभर रहता है सुरक्षित
यहां के नींबू-मिर्च के अचार की एक विशेषता यह भी है कि इसमें तेल नहीं डाला जाता। न ही किसी प्रकार का रसायन इसमें डाला जाता है। यह अचार मिट्टी के मटकों में वर्षभर सुरक्षित रहता है। पांच पीढियों से इस अचार व्यवसाय से जुड़े महेन्द्र जगदीश प्रसाद गुप्ता ने बताया कि लगभग 145 वर्ष पहले उनके परदादा शिवसहाय गुप्ता ने अचार बनाने का कार्य शुरु किया था। जो आज चौथी पीढी तक बरकरार है। उन्होंने बताया कि मिर्च और नींबू का अचार अलग-अलग बनाया जाता है। सात-आठ दिन बाद इनको मिला कर मिट्टी के बर्तनों में भर दिया जाता है। गुप्ता ने बताया कि अचार बनाने में 25 प्रकार के मसाले काम में लेते हैं, जो इमामदस्ते में हाथ से कूटाई कर तैयार किए जाते हैं।
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राज्य सरकार से नहीं मिल रहा है प्रोत्साहन
चार पीढ़ियों से अचार का व्यवसाय कर रहे सुधीर गुप्ता ने बताया कि उनके परदादा परशुराम गुप्ता उनके दादा गिन्नी लाल गुप्ता व पिता बाबूलाल गुप्ता और अब वह स्वयं अचार का व्यवसाय कर रहे हैं। लेकिन राज्य सरकार की ओर से इस व्यवसाय को कोई प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है। मार्केट में डिब्बा बंद अचार भी आ गया है। मूल्य की तुलना में उनका अचार महंगा पड़ता है। इस कारण अचार व्यवसाय में लगे परिवार अन्य व्यवसाय को अपनाने लगे हैं।
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देश-विदेश में मांग
खेतड़ी के अचार की कोलकता, मुम्बई, सूरत, दिल्ली सहित देश के अन्य हिस्सो तथा अमेरिका, कनाडा में बसे प्रवासियों में भारी मांग रहती है।