जरूरतमंद युवकों को संबल प्रदान करने के लिए उसने बहुराष्ट्रीय कम्पनी से करीब पचास लाख रुपए का वार्षिक पैकेज छोड़कर हरियाणा के रेवाड़ी में कोचिंग सेंटर खोला है। इसका संचालन करीब दो साल से किया जा रहा है। इस सेंटर से जरूरतमंद परिवारों के दस प्रतिभावान विद्यार्थी एनडीए व मेडिकल कॉलेज में प्रवेश ले चुके। सचिन ने खुद ने आइआइटी धनबाद से बीटेक किया है।
… ताकि न हो औरों को परेशानी
सचिन ने बताया कि उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। फिर बीटेक करने के बाद एक कम्पनी में इंजीनियर लग गया। वहां तीन साल कार्य किया, लेकिन एक दिन सोचा कि मुझे यहां तक पहुंचने में कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। मेरी जैसी परेशानी किसी और बच्चों के सामने नहीं आए, इसलिए कोचिंग खोली है।
सचिन ने बताया कि उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। फिर बीटेक करने के बाद एक कम्पनी में इंजीनियर लग गया। वहां तीन साल कार्य किया, लेकिन एक दिन सोचा कि मुझे यहां तक पहुंचने में कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। मेरी जैसी परेशानी किसी और बच्चों के सामने नहीं आए, इसलिए कोचिंग खोली है।
परिजन करते हैं खेती
तीस वर्ष के सचिन के पिता ऋषिकेश शर्मा व मां संतोष गांव में रहते हैं तथा खेती का कार्य करते हैं। पत्नी समीक्षा कोचिंग में सहयोग करती है। रहने-खाने का खर्चा भी वहन
सचिन ने बताया कि वह शेखावाटी व अलवर के किसी बच्चे से फीस नहीं लेता। हरियाणा, दिल्ली व अन्य राज्यों से आने वाले बच्चों से भी न्यूनतम फीस लेता है ताकि कोचिंग का खर्चा चल सके। जो जरूरतमंद बच्चे रहने व खाने का खर्चा नहीं उठा सकते, उनका पूरा खर्च भी वह खुद वहन करता है।
तीस वर्ष के सचिन के पिता ऋषिकेश शर्मा व मां संतोष गांव में रहते हैं तथा खेती का कार्य करते हैं। पत्नी समीक्षा कोचिंग में सहयोग करती है। रहने-खाने का खर्चा भी वहन
सचिन ने बताया कि वह शेखावाटी व अलवर के किसी बच्चे से फीस नहीं लेता। हरियाणा, दिल्ली व अन्य राज्यों से आने वाले बच्चों से भी न्यूनतम फीस लेता है ताकि कोचिंग का खर्चा चल सके। जो जरूरतमंद बच्चे रहने व खाने का खर्चा नहीं उठा सकते, उनका पूरा खर्च भी वह खुद वहन करता है।