करीब एक सौ तीस साल पहले गढ़ के मॉडल में बनी तहसील के चारों कोनो पर चार बुर्ज व मध्य में बड़ा हाल व कमरे हैं। तहसील के मुख्य गेट पर निर्माण करते समय चेजारों ने ही अजीतगढ़ तहसील का नाम किया था। इस दरवाजे पर आज भी अजीतगढ़ तहसील होने का साक्ष्य मौजूद है। गांव के 92 वर्षीय सेवानिवृत शिक्षक शंकरलाल शर्मा ने बताया कि गढ़ में तहसील कार्यालय चलता था। तहसीलदार, कानूनगो, सहित अन्य राज के कर्मचारी बैठते थे। इस तहसील में अंर्तगत सिंगनौर तक के 36 गांव थे। शर्मा कुछ तहसीलदारों को तो नाम सहित अच्छी तरह जानते हैं। तहसील के पास पुलिस थाना व जेल भी बनाई थी। पुलिस थाना में कोतवाल बैठता था। अपराधियों को जेल में डाल सजा दी जाती थी। अजीतगढ़ तहसील के गांवों को झुंझुनूं व उदयपुरवाटी तहसील में शामिल कर दिए।
कस्बे की मंडी प्रसिद्ध थी। सामान खरीदने व बेचने के लिए भी लोग यहां आया करते थे। मंडी में सामान बेचने व खरीदने के लिए 84 दुकानों का बाजार था। धीरे-धीरे पुराना बाजार मंडी सब खत्म हो गया। पुराना बाजार की अधिकांश दुकाने क्षतिग्रस्त हो गई। कुछ को तोड़करआवास में शामिल कर लिया।
तहसील भवन के उत्तर दिशा में खेतड़ी राजा ने सबसे पहले गांव में मंदिर व कुएं का निर्माण करवाया था। जिसको लोग आज भी राज का कुआं व राज का मंदिर कहते हैं। इस संबंध में पवन कुमार शर्मा ने बताया कि अजीतगढ़ के मंदिर में खेतड़ी दरबार ने अष्ठधातु की मूर्तियां स्थापित की थी। जिन्हें चोर ले गए। खुलासा आज तक नहीं हुआ।