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झुंझुनू

झुंझुनूं के बेटे राकेश की मेहनत से भीलवाड़ा में थम गया कोरोना

राकेश कुमार बाड़मेर व चूरू में एडीएम तथा चूरू, छबड़ा व गंगापुर में एसडीएम रह चुके हैं। एक अगस्त 1986 को जन्मे राकेश कुमार जेआरएफ व नेट के साथ इतिहास से एमए कर चुके। खेतड़ी के पास बसई गांव के रहने वाले उनके पिता फूलचंद कुम्हार व मां गौरी देवी गांव में ही रहते हैं।

झुंझुनूApr 09, 2020 / 11:41 am

Rajesh

झुंझुनूं के बेटे राकेश की मेहनत से भीलवाड़ा में थम गया कोरोना

झुंझुनूं के बेटे राकेश की मेहनत से भीलवाड़ा में थम गया कोरोना

राजेश शर्मा

झुंझुनूं. पूरे राज्य में सबसे पहले झुंझुनूं व भीलवाड़ा कोरोना के हॉट स्पॉट जिले बने। सबसे पहले कफ्र्यू झुंझुनूं में लगा। भीलवाडा ने सख्ती बरती, केन्द्र की एडवाइजरी के अलावा खुद की गाइडलाइन बनाई। अब भीलवाड़ा तो उबरने लगा है, लेकिन अपना जिला हर दिन खतरनाक हालत में जाने लगा है। भीलवाड़ा के जिस मॉडल की आज देशभर में प्रशंसा हो रही है, उसे बनाने में वहां के कलक्टर राजेन्द्र भट्ट के साथ खेतड़ी उपखंड के बसई गांव निवासी राकेश कुमार की महत्वपूर्ण भूमिका है। राकेश कुमार भीलवाड़ा में एडीएम (प्रशासन) हैं। अब झुंझुनूं जिला प्रशासन ने उनकी सलाह लेना शुरू कर दिया है।
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पत्नी आकांक्षा ने किया पूरा सपोर्ट

राकेश कुमार ने बताया कि वहां कोरोना कहां से आया, इसकी पहचान करना मुश्किल रहा। शुरुआत एक अस्पताल से हुई। वहां चिकित्सक व नर्सिंग स्टाफ पॉजिटिव मिले। हमने अस्पताल में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति का रेकॉर्ड खंगाला। यह काम बहुत मुश्किल था। सभी की पहचान कर आइसोलेट किया। ऐसी कोई रात नहीं थी जब दो बजे से पहले सोते थे। रात को प्लान बनाते। फिर सुबह छह बजे से उस प्लान को मूर्तरूप देने में लग जाते। पूरी टीम ने मेहनत की। इस दौरान मेरी पत्नी आकांक्षा ने मुझे पूरा सपोर्ट किया।
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जानिए हमारे कर्मवीर को

राकेश कुमार बाड़मेर व चूरू में एडीएम तथा चूरू, छबड़ा व गंगापुर में एसडीएम रह चुके हैं। एक अगस्त 1986 को जन्मे राकेश कुमार जेआरएफ व नेट के साथ इतिहास से एमए कर चुके। खेतड़ी के पास बसई गांव के रहने वाले उनके पिता फूलचंद कुम्हार व मां गौरी देवी गांव में ही रहते हैं।
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झुंझुनूं में ये देरी हुई
– सूचना देने के नंबर अब सार्वजनिक किए हैं, वे 15 दिन पहले करते तो बेहतर रहता।

– सीमा 15 दिन पहले सील करनी चाहिए थी।
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भीलवाड़ा से तुलना करते हुए जानिए हमने कहां चूक की
कोरोना पर काबू पाने के लिए जो नियम भीलवाड़ा ने अपनाए उनमें हमारा जिला चूकता रहा। भीलवाड़ा में 27 पॉजिटिव मिले और हमारे जिले में बुधवार सुबह तक 23 मिल चुके।
1. कफ्र्यू : भीलवाड़ा ने कोरोना मरीज मिलते ही पूरे शहर में कफ्र्यू लगा दिया। हमने भी कफ्र्यू लगाया, लेकिन केवल इटली से जो परिवार आया था उसके घर के आस-पास। बाद में वहां से हटा दिया। इटली के बाद शहर में ही तीन व्यक्ति दुबई और रियाद से आए, लेकिन प्रशासन ने दोहरा रवैया अपनाया। रियाद और दुबई से आए तीन जनों के घर के पास कफ्र्यू नहीं लगाया।
2. स्क्रीनिंग में सख्ती : भीलवाडा ने 2100 टीम बनाकर 25 लाख लोगों की स्क्रीनिंग करवाई। 16 हजार 382 लोग जो सर्दी जुकाम से पीडि़त मिले, इनका दोबारा सर्वे करवाया गया। इसके बाद 1215 को होम आइसोलेट कर सरकारी कर्मचारी पहरे पर बिठाए। सख्ती बरती। झुंझुनूं में सर्वे में लोग सच छिपाते रहे। मेडिकल टीम को कई जगह घुसने नहीं दिया। सख्ती नहीं बरती, वरना जो नौ पॉजिटिव बाद में मिले, उनका पता 10 दिन पहले ही चल जाता और कोरोना दूसरे स्टेज में नहीं पहुंचता।
3. सीमा सील : झुंझुनूं में सीमा पार से आने वाले हर व्यक्ति की सख्ती से जांच के आदेश मंगलवार रात जारी किए गए। जबकि भीलवाड़ा में पहले दिन से किया गया। इसके अलावा पड़ौसी जिलों के कलक्टर से फोन करके भी भीलवाड़ा ने सीमा सील करवाई।
4. सेल्फी-फोटो : कई लोग भोजन सामग्री बांटते हुए उनके साथ सेल्फी ले रहे हैं। भीड़ एकत्रित हो रही है। मंडावा में तो एक संस्था जो भोजन सामग्री बांट रही थी, उसका आटा व मसाला कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति पीसता था। प्रशासन को जानकारी तक नहीं मिली। कोटा के कलक्टर ने 7 अप्रेल को आदेश जारी किए कि जरूरतमंदों को भोजन देते समय किसी ने फोटो या सेल्फी ली तो उसके खिलाफ आइपीसी के तहत कार्रवाई होगी, हमारे यहां भीड़ में फोटो और सेल्फी फैशन बना हुआ है।
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बरत रहे सख्ती

हर जगह सख्ती बरत रहे हैं। एक फरवरी के बाद जो भी दूसरे देश, प्रदेश या जिलों से आए हैं, उन्होंने खुद सूचना नहीं दी या छिपाई तो पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई जाएगी। जिले की सीमा से आने वाले हर व्यक्ति की मेडिकल जांच करवाना शुरू कर दिया है।
– यूडी खान, कलक्टर, झुंझुनूं

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