फौजी भाई ने जगाया जज्बा
-आशा ने बताया कि छह जुलाई 2015 को वह अपनी सहेली के साथ अमरनाथ यात्रा पर निकली थी।
-यात्रा के दौरान उनकी फुर्ती व जुनून को देखकर एक फौजी भाई ने उनको एवरेस्ट का सफर करने की सलाह दी।
-घर आकर नेट पर एवरेस्ट से जुड़ी जानकारी व सफर की प्रक्रिया जानी और एवरेस्ट फतह करने की योजना बनाई।
-मई-जून 2016 में 28 दिन का दार्जिंलिंग(पश्चिम बंगाल) से बेसिक माउंटनियरिंग कोर्स किया।
– बेसिक माउंटनियरिंग कोर्स में 73 लड़कियां थी। बेसिक के बाद एडवांस माउंटनियरिंग में वे एक मात्र लड़की थीं।
-ट्रेनिंग के बाद आशा ने 8 अप्रेल 2017 में एवरेस्ट का सफर शुरू किया। 16 अप्रेल 2017 को वे एवरेस्ट बैंस कैंप पहुंचीं।
-यहां से उनको चाइना की तरफ से चढ़ाई करनी थी। यहीं से उनका जोखिम भरा सफर शुरू हुआ।
-आशा ने कठिन परिस्थिति व खराब मौसम के बावजूद 22 मई 2017 की सुबह 4.05 बजे एवरेस्ट फतह किया।
-एवरेस्ट की चोटी पर बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, महिला सशक्तिकरण व इनकम टैक्स का संदेश लिए तिरंगा फहराया।
आशा का कहना है कि बेटियां किसी भी मामले में बेटों से कम नहीं हैं। बेटियां लक्ष्य बनाकर हर सफलता हासिल कर सकतीं हैं। आशा ने बताया कि उनकी इच्छा है कि वे राजस्थान पुलिस में लगे तथा बेटियों को पुलिस में रहते मजबूत करें। वे यह काम पैसों के लिए नहीं करना चाहतीं।
आशा ने बताया कि इस सफलता को हासिल करने में पति अजयसिंह, बेटी प्रेरणा, बेटा तन्मय व मां सावित्रीदेवी का पूरा स्पोर्ट मिला। उन्होंने बताया कि ससुराल वाले एवरेस्ट चढ़ाई के खिलाफ थे, रेवाड़ी में एएसआई के पद पर कार्यरत पति अजयसिंह ताखर ने पूरा सहयोग दिया। आशा को 15 अगस्त 2017 को चार जगह सम्मानित किया गया। जिसमें पीहर झुंझुनूं, ससुराल महेंद्रगढ़, जॉब स्थल अलवर व पति के जॉब स्थल रेवाड़ी शामिल थे, मगर आशा ने अपने जिले झुंझुनूं में सम्मानित होने की ठानी।
आशा के पिता मोहरसिंह झाझडिय़ा करीब 14 साल से पैरालाइसिस से पीडि़त हैं। वे बोल नहीं सकते। जब पिता मोहरसिंह को उनकी सफलता की जानकारी मिली तो उनकी आंखों में आंसू बहने लगे। उन्होंने बोलकर खुशी जाहिर करनी चाही। मगर शब्द जबाव दे गए।