वर्तमान में दिग्विजय ने यह चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा था। क्योंकि जननायक जनता पार्टी को अभी चुनाव आयोग से मान्यता नहीं मिली है। जिसके चलते अधिकारित तौर पर जजपा का अभी जन्म नहीं हुआ है। इसके बावजूद दिग्विजय ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल करने के अलावा खुद को जजपा प्रत्याशी के रूप में ही प्रचारित किया। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं ने दिग्विजय का खुलकर समर्थन किया था।
चुनाव परिणाम के अनुसार दिग्विजय दूसरे नंबर पर रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित हो चुके एवं मुख्यमंत्री पद के एक दावेदार रणदीप सिंह सुरजेवाला को जहां हराया है वहीं अपने सबसे बड़े राजनीतिक विरोधी एवं चाचा अभय चौटाला के समक्ष यह साबित कर दिया है कि अब उनकी राजनीतिक राह आसान नहीं है। दिग्विजय को पूरे हलके से वोट मिले हैं। किसी भी पोलिंग बूथ पर उनकी स्थिति इनेलो प्रत्याशी जैसी नहीं रही है।
शहरी क्षेत्र में जहां इनेलो व अन्य दलों की हालत पतली रही है वहीं दिग्विजय को जींद शहर से भी वोट मिले हैं। पूरे चुनाव अभियान और परिणाम ने यह साफ कर दिया है कि जजपा प्रत्याशी को जाटों के साथ-साथ गैर जाटों का भी समर्थन मिला है।
राजनीतिक रूप से फंसे हुए जींद के उपचुनाव में दिग्विजय का नंबर दो पर आना भविष्य की राजनीति के लिए नया संकेत है। दिग्विजय को चंडीगढ़ पहुंचने के लिए अभी काफी मेहनत की जरूरत है लेकिन इस चुनाव ने उन्हें राजनीति में स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई है।