ऐसे सुलझी सरनेम की पहेली
हरियाणा के सोनीपत में स्थित दीनबंधू छोटूराम यूनिवर्सिटी साइंस एंड टेक्नोलॉजी के कुलपति हैं राजेन्द्र कुमार अनायत। कुलपति अनायत केरल के पालक्काड़ के रहने वाले हैं। अनायत सरनेम सालों से कुलपति राजेन्द्र कुमार के लिए एक पहेली बना हुआ था। वीसी ने वर्षों पहले अपने पिता गोपाल अनायत वासुदेवन और दादा वासुदेवन भट्टार्थी अनायत से कई बार अपने सरनेम का अर्थ पूछा, लेकिन वे बता नहीं पाए। हरियाणा में विश्वविद्यालय के वीसी नियुक्त होने के बाद एक दिन उनके पास गोहाना के गांव के ग्रामीण महेंद्र सिंह शास्त्री मिलने पहुंचे। उन्होंने बताया कि वे भी ‘अनायत’ हैं। इस पर कुलपति की जिज्ञासा हुई कि ये अनायत कौन होते हैं? वहीं, महेंद्र सिंह ने उन्हें बताया कि उनके गांव का नाम अनायत है और शायद आपके पुरखे भी इसी गांव से गए होंगे।
250 साल पहले केरल गए पूर्वज
ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव का नाम ‘अनायत’ है। उन्होंने संभावना जताई कि कुलपति के पुरखे ‘अनायत’ गांव से ही केरल में जाकर बसे होंगे। जब इसकी खोज की गई तो सच में कुलपति के पुरखे गोहाना के गांव ‘अनायत’ गांव के निकले। ग्रामीणों का दावा है कि कुलपति के पूर्वज करीब 250 साल पहले गांव से जाकर केरल में बस गए होंगे। वीसी ने बिना साक्ष्य इसे मानने से इनकार कर दिया। कुछ दिन बाद महेंद्र सिंह शास्त्री और ग्रामीण अजीत सिंह फिर से वीसी से मिलने पहुंचे। फिर वही बात उठी। इसके बाद तय हुआ कि हरिद्वार में जाकर वंशावली वाली पोथी देखी जाए। हरिद्वार में पूरण और उनके बेटे जो गांव अनायत के लोगों की वंशावली का रिकॉर्ड रखते थे, उनसे पोथी देखी गई। इससे कुलपति से 15 पीढ़ी पहले के उनके पूर्वज श्रीकृष्ण अच्युत अनायत का उल्लेख मिला। सबसे पहले उन्होंने अनायत सरनेम प्रयोग किया था, तब से कुलपति का परिवार अनायत सरनेम प्रयोग कर रहा है।
पंडों की पोथियों से मिला प्रमाण
पंडों की पोथियों से मिले पूरे वंश के लिपिबद्ध प्रमाण के बाद वीसी ने मान लिया कि उनके पुरखे गोहाना के गांव अनायत से ही गए हैं। वीसी ने बताया कि श्रीकृष्ण अच्युत अनायत पर शंकराचार्य जी का प्रभाव रहा होगा और जाकर केरल में बस गए होंगे। वहां पर वे संस्कृत गुरु या राजा के पुरोहित रहे होंगे। कुलपति अनायत ने बताया कि केरल में जाकर भी उनके पूर्वजों ने पूजा-पाठ और संन्यास परंपरा जारी रखी, जबकि केरल के लोग संन्यास परंपरा में विश्वास नहीं रखते। उत्तर भारत की संन्यास प्रथा को उनके पूर्वजों ने जिंदा रखा। उनके तीन पूर्वज संन्यासी रहे हैं। इनमें एक ने केदारनाथ में और दो ने काशी जी में अपने संन्यासी जीवन का लंबा समय बिताया और वहीं निर्वाण प्राप्त किया। उत्तर भारत की संन्यास प्रथा को उनके पूर्वजों ने जिंदा रखा।
अपराधरहित है अनायत
गांव अनायत के ग्रामीणों ने बताया कि सौ साल में गांव में कोई हत्या या दुष्कर्म की वारदात नहीं हुई। गांव का कोई व्यक्ति किसी मामले में जेल में नहीं है। लोग पुलिस थाने नहीं जाते। छोटे-बड़े मामले गांव में ही निपटा लिए जाते हैं। सरपंच के पति मुकेश ने बताया कि गांव के लोगों में देश सेवा का जज्बा कूट-कूटकर भरा है। गांव से करीब सौ लोग सेना में हैं। लिखने-पढऩे में गांव का नाम अनायत है जबकि बोलचाल में इसे न्यात गांव कहा जाता है।
पूर्वजों की जन्मस्थली में बसने का इरादा
राजेंद्र कुमार अनायत ने बताया कि जबसे उन्हें पता चला है कि गांव अनायत उनके पुरखों की जन्मस्थली है तब से वे इसे गांव के लोगों को ही अपना परिवार मानते हैं और ग्रामीण भी कुलपति को गांव अनायत रत्न की उपाधि दे चुके हैं। समय मिलने पर कुलपति गांव अनायत जाते हैं। गांव की सरपंच रेखा रानी के पति मुकेश, डॉ. अजीत सिंह, महेंद्र सिंह शास्त्री को अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं। उनके पुरखों की जन्मभूमि उनकी कर्मभूमि बन गई है।
पुरखों की जन्मभूमि ने बुला लिया
कुलपति डॉ. राजेंद्र कुमार अनायत ने बताया कि यह सच है कि पुरखों की जन्मभूमि ने ही उन्हें बुला लिया है और यह आज उनकी कर्मभूमि बन गई है। इसका खिंचाव वह महसूस कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे अब कई बार गांव अनायत जा चुके हैं। उनका मन है कि सेवानिवृत्ति के बाद वे यहीं बस जाएंगे और अपना बाकी का जीवन यहीं पूरा करेंगे। साल-दो साल में कभी-कभार केरल में अपने रिश्तेदारों से मिलने जाया करेंगे।