खून के बदले मांगा खून तो महिला को अकेला छोड़ भाग गए
आदिवासी इलाकों की यह दास्तां
खून के बदले मांगा खून तो महिला को अकेला छोड़ भाग गए
सिकन्दर पारीक
जोधपुर। आदिवासी इलाकों बांसवाड़ा,सिरोही, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, पाली, राजसमंद व उदयपुर में अव्वल तो जनजाति वर्ग की महिलाओं के स्वास्थ्य का पाया बेहद कमजोर है। वहीं गर्भावस्था और अन्य बीमारियों में खून की जरूरत होने पर भ्रांतियों के चलते परिजन उन्हें अस्पताल में ही छोडकऱ चले जाते हैं। महिलाएं मौत से जूझ रही होती है और परिजन खून नहीं देते हैं। विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों, रक्तदाताओं और स्वास्थ्य महकमे के अधिकारियों ने कई बार समझाइश का प्रयास भी किया लेकिन स्थिति यथावत है।
प्रसवकाल में सर्वाधिक समस्या
आंकड़ों के अनुसाार प्रत्येक पांच गर्भवती में से एक कुपोषित है। वहीं, जनजातीय इलाकों में हालात इससे भी बुरे हैं। यहां महिलाएं खून की कमी से परेशान हैं। प्रसवकाल में कई ऐसी महिलाएं दम तोड़ देती है।
डूंगरपुर में 72 और सिरोही में 64 फीसदी महिलाएं एनीमिक
प्रदेश में 15 से 49 वर्ष की 54.4 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से ग्रसित है तो जनजातीय इलाकों में भी यह आंकड़ा काफी ज्यादा है। सर्वाधिक डूंगरपुर में 72 फीसदी महिलाएं एनीमिया से ग्रसित है। इसी तरह सिरोही में 64, उदयपुर 60.5, पाली 58.8, बांसवाड़ा 52.8, राजसमंद 58.4, प्रतापगढ़ में 53.1 फीसदी महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं। उल्लेखनीय है कि शरीर में खून की कमी से एनीमिया होता है। खून में पर्याप्त स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाएं या हीमोग्लोबिन नहीं होता है। हीमोग्लोबिन के स्तर में कमी या असामान्य होने पर शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है।
सुधार का प्रयास जारी है
आदिवासी इलाकों में यह स्थिति चिंताजनक है। धीरे धीरे हम भ्रांतियां दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। आबूरोड में आदिवासी दिवस पर रक्तदान शिविर लगाया गया और उस दिन आदिवासी समाज के युवाओं से आह्वान किया कि वे रक्तदान करें। पहली बार 80 यूनिट रक्त संग्रहित किया। इस तरह के प्रयास और करेंगे।
डॉ. राजेश, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, सिरोही
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