चिकित्सकों के समूह के 30 संगठनों की ओर से आईटी मंत्रालय को लिखे गए पत्र में भी चिंता व्यक्त की। पत्र में कहा कि यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य का मामला है और इसलिए इसे खतरे में डालकर व्यावसायिक हितों की रक्षा नहीं की जानी चाहिए। उल्लेखनीय है कि 28 अगस्त, 2018 को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को ईएनडीएस पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक परामर्शिका जारी की थी। हाल ही मंत्रालय से नियुक्त स्वास्थ्य विशेषज्ञों के पैनल ने ईएनडीएस पर 251 शोध अध्ययनों का विश्लेषण किया। पैनल का निष्कर्ष है कि ईएनडीएस किसी भी अन्य तंबाकू उत्पाद जितना ही खराब है और निश्चित रूप से असुरक्षित है।
टाटा मेमोरियल अस्पताल के उप निदेशक एवं हैड-नेक कैंसर सर्जन डॉ. पंकज चतुर्वेदी का कहना है कि निकोटीन भी एक जहर ही है। लेकिन चिन्ता इस बात की है कि ईएनडीएस उद्योगों की लॉबी ने डॉक्टरों के एक समूह को लामबंद किया है, जो ईएनडीएस उद्योग के अनुरूप भ्रामक, विकृत जानकारी साझा कर रहे हैं। जोधपुर एम्स के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. अमित गोयल के अनुसार शोध से साबित हो चुका है कि ईएनडीएस सुरक्षित नहीं है या धूम्रपान की समाप्ति का विकल्प नहीं हैं। निकोटिन पर निर्भरता स्वास्थ्य के लिए एक प्रमुख खतरा है। यह एक अत्यधिक नशे की लत वाला रसायन है। इन उत्पादों को भारत में प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। चिकित्सकों का कहना है कि ई सिगरेट को सुरक्षित किसी भी पदार्थ की तरह से प्रचारित नहीं किया जाना चाहिए। एकमात्र तरीका पूरी तरह से धूम्रपान छोडऩा है और किसी भी तंबाकू उत्पाद का उपयोग शुरू नहीं करना है। द अमेरिकन कैंसर सोसाइटी (एसीएस ) और द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज इंजीनियरिंग मेडिसिन (एनएएसईएम) का मानना है कि ई-सिगरेट से शुरू करने वाले युवाओं का सिगरेट के इस्तेमाल करने व आदी होने और इन्हें नियमित धूम्रपान करने वालों में भी बदल जाने की संभावना अधिक होती है। लेकिन तंबाकू कंपनियां चाहती हैं कि नई पीढ़ी निकोटीन और धूम्रपान के प्रति आकर्षित हो और वह इसकी लत की शिकार बनी रहे। जबकि
इसलिए फल-फूल रहा नेटवर्क-
वायॅस ऑफ टोबेको विक्टिम के अभियान से जुड़े चिकित्सकों ने चिन्ता जताई है कि चिकित्सकों का एक वर्ग ही ईएनडीएस लॉबी से प्रभावित होकर अन्तरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संघों की रिपोर्ट के संदर्भ को गलत तरीके से प्रचारित कर रहे हैं। जिससे ईएनडीएस का नेटवर्क बढ़ रहा है। जबकि हकीकत यह है कि अन्तरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संघों की रिपोर्ट में ई-सिगरेट को अत्यधिक नशे की लत वाला रसायन व विषाक्त पदार्थ माना गया है।
अमरीका में विद्यार्थियों में बढ़ा 78 प्रतिशत ई-सिगरेट का चलन-
अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) की एक रिपोर्ट के अनुसार यूएस में 2017 से 2018 तक एक वर्ष में ई-सिगरेट का उपयोग हाई स्कूल के विद्यार्थियों में 78 प्रतिशत और माध्यमिक स्तर विद्यालय के विद्यार्थियों में 48 प्रतिशत तक बढ़ा है। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में किशोरों में पारंपरिक धूम्रपान का प्रचलन कम हो रहा है। लेकिन ये किशोर समय के साथ नियमित सिगरेट का भी इस्तेमाल करेंगे। सीडीसी, यूएस सर्जन जनरल की रिपोर्ट 2016, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अध्ययन और रिपोर्टों में यह भी गया कहा है कि तंबाकू का उपयोग नहीं करने वाले युवाओं, वयस्कों, गर्भवती महिलाओं या वयस्कों के लिए ईएनडीएस सुरक्षित नहीं है।
इसलिए बढ़ रहा चलन-
ज्ञात है कि ई-सिगरेट को ई-सिग, वेप्स, ई-हुक्का, वेप पेन भी कहा जाता है, जो इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम (ईएनडीएस) हैं। कुछ ई-सिगरेट नियमित सिगरेट, सिगार या पाइप जैसे दिखते हैं। कुछ यूएसबी फ्लैश ड्राइव, पेन और अन्य रोजमर्रा की वस्तुओं की तरह दिखते हैं। जो युवाओं को बेहद आकर्षित करने वाले होते है। ईएनडीएस में ई-सिगरेट, ई-हुक्का आदि शामिल हैं।