31 आजादी के दीवानों को रखा गया था नजरबंद वर्ष 1942 में भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन के दौरान जोधपुर संभाग के 31 आजादी के दीवानों को दिसम्बर 1942 से अगस्त 1943 तक करीब 8 माह तक नजरबंद करने के दौरान कई तरह की यातनाएं सहनी पड़ी थी। जंगे आजादी के सिपाहियों के परिजन लंबे अर्से से माचिया किले को खोलने की मांग करते रहे है। वर्तमान में माचिया बॉयोलॉजिकल पार्क का हिस्सा बन चुके माचिया किले के प्रवेश द्वार यदि खोल दिए जाए तो जंगे आजादी के सिपाहियों की यातनाओं से जुड़ा स्मारक लोगों में देशभक्ति का संचार करता रहेगा।
ये थे माचिया किले में नजरबंद स्वतंत्रता सेनानी रणछोड़दास गट्टानी, राधाकृष्ण बोहरा तात, भंवरलाल सर्राफ, तारकप्रसाद व्यास, शांति प्रसाद व्यास, गणेशचन्द्र जोशी, मौलाना अतहर मोहम्मद, बालकृष्ण व्यास, पुरुषोत्तमदास नैयर, नरसिंगदास लूंकड़, हुकमराज मेहता, द्वारकादास पुरोहित, माधोप्रसाद व्यास, कालूराम मूंदड़ा, गोपाल मराठा, पुरुषोत्तम जोशी, मूलराज घेरवानी, गंगादास व्यास, हरिन्द्र कुमार शास्त्री, इन्द्रमल फोफलिया, छगनलाल पुरोहित, श्रीकृष्ण कल्ला, तुलसीदास राठी (सभी जोधपुर), शिवलाल दवे नागौर, देवकृष्ण थानवी, गोपाल प्रसाद पुरोहित, संपतलाल लूंकड़, (सभी फलोदी), भंवरलाल सेवग पीपाड़, हरिभाई किंकर, मीठालाल त्रिवेदी सोजत, शांति प्रसाद व्यास, अचलेश्वर प्रसाद शर्मा मामा, बालमुकुंद बिस्सा, जोरावरमल बोड़ा, गिरिजा जोशी को काला पानी की सजा के समकक्ष माने जाने वाले माचिया किले में नज़रबंद रखा गया था।
बजट में भी करोड़ों की घोषणा ऐतिहासिक माचिया किले की वीरानी को दूर करने के लिए वर्तमान राज्य सरकार ने विकास के लिए बजट घोषणा में 2 करोड़ देने की घोषणा की थी। जोधपुर जिला कलक्टर व प्रशासनिक अधिकारियों ने किले का अवलोकन भी किया लेकिन सम्पूर्ण कार्य योजना के लिए अभी तक डीपीआर तक तैयार नहीं हो पाई है।
साल में दो बार देते है श्रद्धांजलि आध्यात्मिक क्षेत्र पर्यावरण संस्थान की ओर से हर साल माचिया किले में गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर पिछले कई सालों से जंगे आजादी के सिपाहियों को श्रद्धांजलि दी जाती है। संस्थान के अध्यक्ष रामजी व्यास ने बताया कि संरक्षित वन क्षेत्र में जब टाइगर को देखने की अनुमति मिल सकती है तो आजादी के दिवानों से जुड़े स्मारक को भला राज्य सरकार खोलने में देरी क्यों कर रही है। आजादी के अमृत महोत्सव में माचिया किले को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े स्मारक को आमजन के लिए खोल देना चाहिए ।