खाद्य सुरक्षा योजना के तहत चयनित उपभोक्ता के राशन कार्ड पर एक यूनिट (व्यक्ति) को 5 किलो गेंहूं का हर माह वितरण होता है। ऐसे में 35,020 क्विंटल अतिरिक्त गेहूं के वितरण के लिए 7 लाख चार सौ यूनिट की आवश्यकता होती है। पांच यूनिट औसत का भी एक परिवार मानें तो 1,40,080 राशन कार्डधारी नए परिवार होने चाहिए, जबकि 33,000 नए परिवारों के नाम पर ही गेहूं की मांग की गई थी। करीब 33 हजार परिवार बढऩे पर औसत पांच व्यक्तियों के परिवार मानकर गणना की जाए तो 165000 यूनिट होते हैं। इनके लिए 8,250 किलो गेहूं की ही जरूरत होती है।
पैंतीस हजार क्विंटल गेहूं के अतिरिक्त आवंटन में से नियम के विपरीत ग्रामीण क्षेत्र की लूनी, मंडोर व बावड़ी क्रय-विक्रम सहकारी समिति में वितरण करना दर्शा दिया, जबकि यह गेहूं सिर्फ शहरी क्षेत्र के लिए था।
निर्मला ने मार्च 2016 में तैंतीस हजार नए परिवार जुडऩे के नाम पर पैंतीस हजार क्विंटन गेहूं का आवंटन कराया था। परिवार जुड़े होते तो ऑनलाइन क्यूं नहीं किया गया। अगले माह गायब कैसे हो गए। नगर निगम की ओर से जारी चार जावक पत्र में से अंतिम पत्र में 15152 परिवार की अहस्ताक्षरित संख्या है, जो संदिग्ध मानी गई है। तीन दिन बाद की तारीख 11 अगस्त 2015 अंकित है। पत्र 7 अगस्त को ही डिस्पेच होना बताया गया है।
निर्मला से पूछताछ में स्पष्ट है कि 35 हजार क्विंटल गेहूं की मांग पहले समर्पित गहूं के लिए की गई थी। उन्होंने यह स्वीकारा है कि राशन डीलरों को गेहूं आवंटन करने संबंधित कार्य जिला रसद अधिकारी का ही होता है। वो हीहस्ताक्षर करते हैं। निर्मला ने राशन डीलरों को आवश्यकता न होने और दुकान बंद होने पर भी गेहूं आवंटन किए थे।
आटा मिल मालिक स्वरूपसिंह ने पूछताछ में स्वीकारा कि अतिरिक्त आवंटित गेहूं में खुदबुर्द किए राशन के गेहूं की बिक्री पर 5 रुपए प्रति किलो निर्मला, 4 रुपए प्रति किलो संबंधित राशन डीलर, एक रुपए प्रति किलो गेहूं शाखा के लिपिक अशोक पालीवाल और शेष राशि स्वरूपसिंह व सुरेश उपाध्याय में आधी-आधी बांटी गई थी।
आरोपी स्वरूपसिंह की उमा इण्डस्ट्रीज नामक आटा मिल है। उसने 25 सौ से तीन हजार क्विंटल गेहूं राजेश अग्रवाल, 15 सौ क्विंटल गेहूं मुखराम सारस्वत की फर्म अंबिका फूड सांगरिया, तीन हजार क्विंटल गेहूं अन्य व्यक्तियों को बेचना और खुद की आटा मिल में 44 सौ क्विंटल गेहूं पीसना व खुर्दबुर्द करना स्वीकारा है।
उमा इण्डस्ट्रीज की मार्च 2016 की ऑडिट रिपोर्ट देखने पर एक किलो गेहूं भी नहीं पीसने की जानकारी मिली, लेकिन उस माह बिजली का बिल 1.5 लाख रुपए का भुगतान किया गया था। अप्रेल में एक हजार क्विंटल गेहूं पीसा गया था और बिल 1.43 लाख रुपए का भुगतान किया गया था। मई में एक क्विंटल गेहूं भी नहीं पीसा था, लेकिन बिल 1.35 लाख भरा गया था।
1 जून 2017 राजस्थान पत्रिका में ‘सीएमओ से आई जांच फाइलों में दब गई, जिस अफसर पर आरोप उसी ने रुकवा दी जांच’ समाचार प्रकाशित किया था। अतिरिक्त खाद्य आयुक्त पी रमेश के कार्यालय से जांच के आदेश दिए गए थे। जांच में निर्मला के पत्र पर गेहूं आवंटन की मांग व आवंटित किया जाना प्रमाणित हुआ था। संभागीय उपभोक्ता संरक्षण अधिकारी महेन्द्रसिंह नूनिया ने जांच रिपोर्ट में यह अंकित भी किया था।
– भंवरसिंह सांदू, तत्कालीन जिला रसद अधिकारी प्रथम
– महावीरसिंह राजपुरोहित, पूर्व डीएसओ जोधपुर
– भावना दयाल, तत्कालीन प्रवर्तन निरीक्षक डीएसओ प्रथम, जोधपुर
– संबंधित राशन डीलरों के मजिस्ट्रेट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान।
– सैकड़ों राशन कार्ड होल्डर्स के राशन कार्ड का अवलोकन। मार्च 2016 में अतिरिक्त आवंटन नहीं मिला।
एसीबी ने सबसे पहले 30 जनवरी को आटा मिल मालिक स्वरूपसिंह को गिरफ्तार किया था। उसने सरकारी राशन का 12 हजार क्विंटल गेहूं गबन करना कबूल किया था। परिवहन ठेकेदार सुरेश उपाध्याय भी गिरफ्तार हो चुका है। लिपिक अशोक पालीवाल का सुराग नहीं है।
एसीबी एसपी अजयपाल लाम्बा के निर्देशन में जांच अधिकारी व निरीक्षक मुकेश सोनी की जांच में निर्मला के गेहूं शाखा के लिपिक अशोक पालीवाल, परिवहन ठेकेदार उपाध्याय व आटा मिल मालिक/सह-परिवहन ठेकेदार स्वरूपसिंह के साथ मिलकर गबन की पुष्टि मानी गई।
गेहूं का आवंटन एफसीआई के गोदाम से होता है, जो डीएसओ की ओर से भेजे आवंटन पत्र के आधार पर किया जाता है। जांच में दोषपूर्ण आवंटन पत्र के आधार पर जारी गेहूं के लिए निर्मला ही दोषी पाई गई।
35020 क्विंटल गेहूं में से दस हजार क्विंटल नियम के विपरीत ग्रामीण क्षेत्र में बांट दिए। 6132 क्विंटल गेहूं एफसीआई में लेप्स, शेष बचा गेहूं आटा मिलों में खुर्दबुर्द कर सरकार को 4 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाया।