प्रदेश के मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर-सीनियर प्रोफेसर रैंक के डॉक्टर तो आउटडोर तक में नहीं बैठते। ज्यादातर डॉक्टर्स प्राइवेट प्रेक्टिस की ओर अधिक ध्यान देते हैं, सरकारी अस्पतालों में मरीज देखने ही इनकी रुचि कम ही रहती है। रेजिडेंट डॉक्टर्स के भरोसे आउटडोर में मरीजों की सारसंभाल दशकों से हो रही है। इस बात को कौन नहीं जानता। इस आलम में सुबह 8 बजे आने वाले मरीजों को पहले पर्ची बनवाने के लिए कतार, फिर डॉक्टर को दिखाने की कतार और फिर जांच व नि:शुल्क दवा काउंटर पर घंटों खड़े रहना पड़ता है। अस्पताल में व्यवस्थाओं से थक कर कई मरीज जमीन पर सो जाते है और फर्श पर बैठे मिलना आम बात है। आज आवश्यकता इस बात की है कि सरकार डेंगू के लिए विशेष व्यवस्था करे ताकि दर-दर भटक रहे मरीजों के मर्ज का हल हो सके। नगर निकायों को भी अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा, जहां भी गंदगी है वहां तुरंत प्रभाव से सफाई व छिड़काव इत्यादि करे। खाली निगम पर डालने से कुछ नहीं होगा, हमें अपने घरों को भी ठीक रखना होगा, यह काम सरकार का नहीं है, हमारा है। ध्यान रहे डेंगू का मच्छर सुबह शाम काटता है और घुटने के नीचे काटता है। डेंगू होने की अवस्था में प्लेटलेट्स गिरते हैं, इससे घबराने की जरूरत नहीं है, जैसा चिकित्सक कहे, उसी अनुसार हमें इलाज करवाना चाहिए। जिस तरह सरकार ने कोरोना के लिए टीमें भेजी, ठीक उसी तरह जहां डेंगू के डंक का कहर बरप रहा है वहां सरकार को तुरंत प्रभाव से टीमें भेजनी चाहिए।सं.पु.