बात दूध की करें तो अकेले जोधपुर में ही जून महीने में डेयरी प्रतिदिन 90 हजार लीटर दूध की खरीद कर रही थी, जो अब घट कर 45 हजार लीटर प्रतिदिन पर आ गया है। दूध को लेकर यह संकट चलता रहा तो निश्चय ही छाछ, लस्सी, दही, पनीर और मिठाइयां ही नहीं घी की भी बाजार में उपलब्धता पर असर पड़ना तय है। जनता में भ्रम की स्थिति और दूध उत्पादों की घटती संख्या, दोनों ही ठीक नहीं हैं। समय रहते सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए।
मृत पशुओं के निस्तारण का भी बड़ा संकट है, क्योंकि लगातार खबरें आ रही हैं कि गांवों में मृत पशुओं को उठाने तक की समस्या जटिल हो गई है। गौशालाओं को संक्रमण रहित करने की कवायद बहुत जरूरी है। गोवंश में फैली इस बीमारी से निपटने के लिए राजनीतिक दलों को भी आपसी मतभेद से ऊपर उठकर काम करना होगा। राज्य सरकार, जनप्रतिनिधियों, पशुपालकों, गौशाला संचालकों और जनता के सहयोग से ही इस संक्रमण का मजबूती से मुकाबला हो सकेगा। यह ध्यान रहे कि सही समय पर किया गया सही फैसला ही कारगर साबित होता है। (सं.पु.)