ओसियां के तापू गांव में 1941 में उनका जन्म हुआ। सुमेर स्कूल से स्कूलिंग के बाद एसएमके कॉलेज से स्नातक किया। उनके पिता खेत सिंह भाटी तत्कालीन जोधपुर स्टेट की सरदार इंफैंट्री में थे और उन्होंने मध्य-पूर्व व द्वितीय विश्व युद्ध में सक्रिय भागीदारी की। श्यामसिंह 1963 में सेना में भर्ती हुए थे। वे 9/10 दिसम्बर1971 में सात राजपूताना राइफल्स की एक टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। तत्कालीन मेजर भाटी ने तत्कालीन पूर्व पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में महत्वपूर्ण माने वाली मैनामती की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने रात को मैनामती पहाड़ी के एक छोटे से स्थान पर कब्जा कर लिया जहां खाइयां थी, लेकिन सुबह उठकर देखा तो पाकिस्तान की पूरी टैंक बिग्रेड उनसे महज 200 गज की दूरी पर थी। ब्रिगेड ने उन्हें घेरकर हमला शुरू कर दिया। भाटी के पास सेना की छोटी सी टुकड़ी थी, बावजूद वे एंटी टैंक हथियारों से हमला कर रहे थे। उधर भारतीय टैंक भाटी की सहायता के लिए आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। भारतीय सैन्य अधिकारियो ने वायुसेना को मैनामती पहाड़ी पर हवाई हमला करने का अनुरोध किया लेकिन एयरफोर्स ने सभी लड़ाकू विमानों के ढाका में व्यस्त होने की बात कही। यह बात उस समय कोर कमाण्डर लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह के पास पहुंची। वे भी राजस्थान के चूरू के रहने वाले थे। सगत सिंह ने विषम परिस्थितियों को देखते हुए भाटी को पीछे हटने को कहा लेकिन वे नहीं माने। भाटी ने कहा कि अगर वे पीछे हटे तो पाकिस्तानी टैंकों के शिकार हो जाएंगे। कुछ समय बाद एयरफोर्स से फिर सम्पर्क किया गया लेकिन तब तक लड़ाकू विमानों के पास बम खत्म हो चुके थे। आर्मी के अनुरोध पर एयरफोर्स ने बहादुरी दिखाते हुए खाली विमानों से ही पाकिस्तानी टैंकों के ऊपर नीची उड़ान भरी। हवाईजहाजों के हमले की आशंका से पाक टैंक बिग्रेड के छक्के छूट गए और वे पीछे हटे। मेजर भाटी की रणनीति से मैनामती की लड़ाई कामयाब रही।