(पत्रिका रिपोर्टर ने गत रात 9.30 बजे जब डॉ पीके खत्री को फोन लगाकर हालचाल पूछा तो उन्होंने कहा कि लंच कर रहा हूं। आज काम बहुत ज्यादा था। मेडिकल कॉलेज में केवल नाश्ते से ही काम चलाना पड़ा।)
-डॉ पीके खत्री, इंचार्ज, वायरल रिसर्च डायग्नोस्टिक लेबोरेट्री, डॉ एसएन मेडिकल कॉलेज जोधपुर
मैं सुबह 6.30 उठ जाता हूं और योगा वगैरह करके साढ़े आठ बजे तक अस्पताल आ जाता हूं। अस्पताल आने के बाद समय का कोई ठिकाना नहीं रहता। वार्डों में दिनभर मरीजों की देखरेख, टेलिमेडिसिन के जरिए घर बैठे मरीजों को परामर्श, सरकार द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों की पालना में रात के 10 बज जाते हैं। घर के आने के बाद भी फोन चालू रहता है। स्विच ऑफ भी नहीं कर सकता। रात को 2 बजे सोता हूं। केवल चार घण्टे की नींद हो पाती है। घर में 97 साल के दादा और 92 साल की दादी जी है। थोड़ी चिंता रहती है लेकिन घरवाले समझते हैं। कोविड मरीजों देखभाल ही पहली प्राथमिकता है।
मेरे ही अस्पताल मेरे खास दोस्तों की मौत हो गई, खराब लगता है हमनें पिछले एक महीने में 110 प्रतिशत काम किया है। सुबह 9 बजे आता हूं और रात 8 बजे घर जाता हूं। उसके बाद सारा काम फोन पर चलता है। नींद 4-5 घण्टे की ही होती है। मेरी ही अस्पताल मेरे कई खास दोस्तों की कोविड से मौत हो गई। कइयों के सिटी स्कैन स्कोर 22 से 25 थे। बहुत खराब लगता है। फिर भी जिंदगी है। चलानी पड़ेगी। मेरे घर में भाभी प्रेग्नेंट है। हमारी वजह से उन्हें कोई तकलीफ नहीं हो इसलिए उन्हें घर में ही एक अलग कमरे में आइसोलेट करके रखा है। खाना भी उनको वहीं दिया जाता है। कुल मिलाकर मेरा प्रयास यही है कि कोविड से किसी को भी कोई तकलीफ नहीं हो, मैं 24 घण्टे हॉस्पीटल के लिए तैयार रहता हूं।
-डॉ सुयश गोयल, प्रभारी, गोयल अस्पताल (निदेशक डॉ आनंद गोयल के पुत्र हैं।)
-डॉ राजश्री बेहरा, अधीक्षक, महात्मा गांधी अस्पताल